Breaking News

गलतियों को सुधारने से जीवन आदर्श बनता है

fafsgvsdएक पिता के दो पुत्र थे। दोनों ही युवा थे। दोनों का दावा था कि वे पिता के ह्दय से आज्ञाकारी थे और पिता भी ऐसा सुनकर काफी प्रसन्न होते थे। एक दिन पिता काफी बीमार हो गए। उन्हें लगा कि उनके शरीर में इतनी भी शक्ति नहीं है कि बगीचे में जाकर रोजमर्रा का काम कर पाएंगे। उन्होंने अपने बड़े पुत्र को बुलाया और उससे कहा मौसम खराब हो रखा है। बारिश कभी भी हो सकती है। आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है और काम करने वाले मजदूर भी नहीं है। इसलिए आज तुम बगीचे में जाओं और सारे पके हुए फल तोड़कर गोदाम में सुरक्षित रख दों। पुत्र ने बड़ी ही उद्दडता के साथ ये काम करने से मना कर दिया और बोला पिताजी आज तो मुझे बहुत सारे काम है आप किसी और से करा लीजिए। यह कहकर वह वहां से चला गया मगर घर से कुछ ही दूर जाकर बहुत पश्चाताप हुआ कि पिताजी ने पहली बार कोई काम बताया और मैने इंकार कर दिया। अपनी गलती अनुभव होने के बाद वो सीधा बगीचे में जाकर पिता द्वारा बताए काम को करने लगा। उधर पिता ने उसके इंकार को जानकर छोटे पुत्र को बुलाकर कहा- तुम्हारा बड़ा भाई, जो बहुत आज्ञाकारी होने का दावा करता था आज झूठा निकला। मेरे कहने पर भी बगीचे में जाकर फल तोड़ने से इंकार कर दिया। अब तुम वहां जाकर फल तोड़ लो। अन्यथा हमारा सारी फसल नष्ट हो जाएगी और नुकसान होगा। छोटे पुत्र ने आज्ञापालन में सिर हिलाया और कहा- मै आपके कहे अनुसार शीघ्र ही ये कार्य कर देता हूं। ऐसा कहने के बावजूद वह बगीचे में नही गया और घूमने निकल गया।
इस कहानी में पिता की दृष्टि में भले ही छोटा पुत्र आदर्श बन गया हो, किंतु असली आदर्शवादी बड़ा पुत्र है। क्योंकि उसने इंकार के बाद पश्चाताप महसूस किया और काम में लग गया।
सार- गलती का अहसास होना ही हमें समुचित सुधार की दिशा में प्रवृत करता है।

Check Also

pati-patni

सहानुभूति और समर्पण

यह कहानी एक साधारण बुखार के दौरान पत्नी के प्यार और सहारे की गहराई को दिखाती है। एक अद्भुत बंधन जो बीमारी के समय में भी अदभुत उत्साह और....