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पिता और व्यापारी

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पिता और व्यापारी

कस्बा देहात के बाजार में जगत की पुश्तैनी परचून की दुकान है, पिता की मौत के बाद से लगभग 10 साल से वह इसे चला रहा है, मृदुभाषी होने के कारण उसके ग्राहकी अच्छी है और दुकान का काम भी अच्छा चल रहा है सबसे बड़ी बात यह है कि वह सुबह 6:00 बजे ही दुकान खोल लेता और रात के 10:30-11:00 बजे तक दुकान खुली रखता है, दूकान से कभी छुट्टी लेने के बारे में उसने कभी सोचा ही नहीं, घर तीन किलोमीटर दूर गांव में है, आसपास के लोगों से भी उसके संबंध अच्छे है,जीवन सुखी चल रहा है. एक दिन अचानक ही जगत शाम को 7:00 बजे दुकान बंद कर के चला गया, आसपास के दुकानदार सब अपनी-अपनी ग्राहकों में व्यस्त थे इसलिए उन्हें पता नहीं चला. अगली सुबह भी दुकान देर से खोली और शाम को 7:00 बजे के आसपास दुकान बंद करके जाने लगा तभी पड़ोसी दुकानदार पास आ गया और पूछा, “क्या बात है जल्दी जा रहे हो, घर में सब कुशल मंगल तो है, कल भी जल्दी चले गऐ थे?”.
” हां भाई, वैसे तो सब कुशल मंगल है, पर क्या बताऊं आपको, बेटी ढाई साल की हो गई है जब सुबह दुकान पर आता हुं तब वो सोई रहती थी और जब रात को जब वापस जाता तब भी वह सोई मिलती, दो ढाई साल में उसने कभी देखा ही नहीं मुझे, परसों रात जब मैं घर गया तो वो जाग रही थी, मुझे देख दौड़ कर माँ की गोद चढ़ गई और बोली, “माई ये कौन है? अचानक धक्का सा लगा, क्या फायदा है ऐसे जीवन का, अब सुबह आठ बजे दुकान खोलुगां और रात को सात बजे तक घर वापसी, आखिर परिवार को भी तो थोड़ा वक्त दे दूं”.
पड़ोसी दुकानदार को लगा कि एक पिता एक व्यापारी से जीत गया है.

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