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Daily Archives: January 17, 2018

क्या है हमारा नैतिक धर्म

गौतम बुद्ध जिस वृक्ष के नीचे साधना कर बोध प्राप्त किया था। वह उसके प्रति वे अत्यंत ममता तथा श्रद्धाभाव रखते थे। जब भी वे वहां से गुजते तो बोधी वृक्ष का दर्शन करते नहीं थकते थे। एक दिन एक नए शिष्य ने उन्हें बोधि बृक्ष को नमन करते हुए पूछा, ‘प्रभु! आप एक जड़ वस्तु को नमन क्यों करते …

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कामयाबी के लिए चाहिए नया नज़रिया

एक बालक के मन में नई-नई बातों को जानने की जिज्ञासा थी। उस बालक के मोहल्ले में एक मौलवी रहते थे। एक दिन अब्दुल उन के पास गया और बोला, ‘मै कामयाब बनना चाहता हूं, कृपया बताएं कि कामयाबी का रास्ता क्या है ?’ हंसते हुए मौलवी साहब बोले, ‘बेटा, मै तुम्हें कामयाबी का रास्ता बताऊंगा, पहले तुम मेरी बकरी …

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कबाड़ी की नौकरी से लेखक बनने तक का सफर

    मैक्सिम गोर्की को बचपन से पढ़ना बहुत पसंद था, पर घर में पढ़ाई के लायक स्थितियां नहीं थीं। वह पढ़ना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने एक कबाड़ी के यहां नौकरी कर ली। कबाड़ी की दुकान में रोज हजारों पुस्तकें आती थीं। पुस्तकों को देखते ही गोर्की का मन उन्हें पढ़ने के लिए लालयित हो उठता था। काम के …

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तो एक पतले धागे जितनी है जिंदगी की सच्‍चाई

  एक सम्राट अपने वजीर पर नाराज हो गया। और उसने वजीर को आकाश-छूती एक मीनार में कैद कर दिया। वहां से कूद कर भागने का कोई उपाय न था। कूद कर भागता तो प्राण ही खो जाते। लेकिन वजीर जब कैद किया जा रहा था, तब उसने अपनी पत्नी के कानों में कुछ कहा। पहली ही रात पत्नी मीनार …

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गुरु कोई भी हो सकता है, बस! सीखने की इच्छा होनी चाहिए

  महादेव गोविंद रानाडे जब मुंबई हाईकोर्ट के जज थे। उन्हें नई-नई भाषाएं सीखने का शौक था। जब उन्हें पता चला कि उनका बारबर दोस्त बहुत अच्छी बांग्ला जानता था। तो उन्होंने उसे गुरु बना दिया। जितनी देर बारबर उनकी हजामत करता वे उससे बांग्ला सीखते। यह देखकर उनकी पत्नी बोलीं औरों को पता चलेगा कि कि हाईकोर्ट के जज …

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कबीरवाणीः प्रभु नाम का स्मरण के लिए समय नहीं, भाव चाहिए

एक बार संत कबीर से किसे ने पूछा, आप दिनभर कपड़ा बुनते हैं तो भगवान का स्मरण कब करते हैं? कबीर उसे लेकर झोपड़ी से बाहर आ गए और कहा कि यहां खड़े रहो। तुम्हारे सवाल का जबाव शायद में न दे सकूं, लेकिन उसे दिखा सकता हूं। कबीर ने दिखाया कि एक औरत पानी की गागर सिर पर रखकर …

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ऐसे करें धूर्त की पहचान

  बात मुगलकाल की है। उस समय अकबर का शासन था। अकबर के मंत्री अब्दुल रहीम खानखाना थे। एक दिन एक व्यक्ति ने आकर रहीम के द्वारपाल से कहा, ‘मैं बहुत सिद्ध रसायनी हूं, लोहे से सोना बनाना आता है मुझे और इस बारे में मंत्रीजी से कुछ बातें करना चाहता हूं।’ द्वारपाल ने आकर रहीम को यह संदेश दिया …

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जब विद्यार्थी की निर्भीकता के कायल हुए दादाजी

बहुत समय पहले बिले नामक एक विद्यार्थी था। उसकी खासियत थी कि वह खेलने के समय दिल लगाकर खेलता और पढ़ने के समय एकाग्रचित्त होकर पढ़ता। बिले साहसी था, अपने इसी गुण के कारण वह वृक्षों पर चढ़ जाता। यह सब कुछ देखकर उसके दादाजी को भय लगता। कहीं बिले उन वृक्षों से गिर न जाए। बिले का दादाजी मना …

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