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Bhagavad Gita :अध्याय 11 श्लोक 11 – 43 ,

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आप इस चर तथा अचर सम्पूर्ण दृश्यजगत के जनक हैं । आप परम पूज्य महान आध्यात्मिक गुरु हैं । न तो कोई आपके तुल्य है, न ही कोई आपके समान हो सकता है । हे अतुल शक्ति वाले प्रभु! भला तीनों लोकों में आपसे बढ़कर कोई कैसे हो सकता है?

तात्पर्य

भगवान् कृष्ण उसी प्रकार पूज्य हैं, जिस प्रकार पुत्र द्वार पिता पूज्य होता है । वे गुरु हैं क्योंकि सर्व प्रथम उन्हीं ने ब्रह्मा को वेदों का उपदेश दिया और इस समय अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश दे रहे हैं, अतः वे आदि गुरु हैं और इस समय किसी भी प्रामाणिक गुरु को कृष्ण से प्रारम्भ होने वाली गुरु-परम्परा का वंशज होना चाहिए । कृष्ण का प्रतिनिधि हुए बिना कोई न तो शिक्षक और न आध्यात्मिक विषयों का गुरु हो सकता है ।
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भगवान् को सभी प्रकार से नमस्कार किया जा रहा है । उनकी महानता अपरिमेय है । कोई भी भगवान् कृष्ण से बढ़कर नहीं, क्योंकि इस लोक में या वैकुण्ठ लोक में कृष्ण के समान या उनसे बड़ा कोई नहीं है । सभी लोग उनसे निम्न हैं । कोई उनकों पार नहीं कर सकता । श्र्वेताश्र्वतर उपनिषद् में (६.८) कहा गया है कि –
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न तस्य कार्यं करणं च विद्यते
न तत्समश्र्चाभ्यधिकश्र्च दृश्यते ।
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भगवान् कृष्ण के भी सामान्य व्यक्ति की तरह इन्द्रियाँ तथा शरीर हैं, किन्तु उनके लिए अपनी इन्द्रियों, अपने शरीर, अपने मन तथा स्वयं में कोई अन्तर नहीं रहता । जो लोक मुर्ख हैं, वे कहते हैं कि कृष्ण अपने आत्मा, मन, हृदय तथा अन्य प्रत्येक वस्तु से भिन्न हैं । कृष्ण तो परम हैं, अतः उनके कार्य तथा शक्तियाँ भी सर्वश्रेष्ठ हैं । यह भी कहा जाता है कि यद्यपि हमारे सामना उनकी इन्द्रियाँ नहीं है , तो भी वे सारे ऐन्द्रिय कार्य करते हैं । अतः उनकी इन्द्रियाँ न तो सीमित हैं, न ही अपूर्ण हैं । न तो कोई उनसे बढ़कर है, न उनके तुल्य कोई है । सभी लोग उनसे घट कर हैं ।
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परम पुरुष का ज्ञान, शक्ति तथा कर्म सभी कुछ दिव्य हैँ । भगवद्गीता में (४.९) कहा गया है –
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जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः ।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोSर्जुन ।।
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जो कोई कृष्ण के दिव्य शरीर, कर्म तथा पूर्णता को जान लेता है, वह इस शरीर को छोड़ने के बाद उनके धाम को जाता है और फिर इस दुखमय संसार में वापस नहीं आता । अतः मनुष्य को जान लेना चाहिए कि कृष्ण के कार्य अन्यों से भिन्न होते हैं । सर्वश्रेष्ठ मार्ग तो यह है कि कृष्ण के नियमों का पालन किया जाय, इससे मनुष्य सिद्ध बनेगा । यह भी कहा गया है कि कोई ऐसा नहीं जो कृष्ण का गुरु बन सके, सभी तो उनके दास हैं । चैतन्य चरितामृत (आदि ५.१४२) से इसकी पुष्टि होती है – एकले ईश्र्वर कृष्ण, आर सब भृत्य – केवल कृष्ण ईश्र्वर हैं, शेष सभी उनके दास हैं । प्रत्येक व्यक्ति उनके आदेश का पालन करता है । ऐसा कोई नहीं जो उनके आदेश का उल्लंघन कर सके । प्रत्येक व्यक्ति उनकी अध्यक्षता में होने के कारण उनके निर्देश के अनुसार कार्य करता है । जैसा कि ब्रह्मसंहिता में कहा गया है कि वे समस्त कारणों के कारण हैं ।

PURPORT
The Lord Kṛṣṇa is worshipable as a father is worshipable for his son. He is the spiritual master because He originally gave the Vedic instructions to Brahmā, and presently He is also instructing Bhagavad-gītā to Arjuna; therefore He is the original spiritual master, and any bona fide spiritual master at the present moment must be a descendant in the line of disciplic succession stemming from Kṛṣṇa. Without being a representative of Kṛṣṇa, one cannot become a teacher or spiritual master of transcendental subject matter.
The Lord is being paid obeisances in all respects. He is of immeasurable greatness. No one can be greater than the Supreme Personality of Godhead, Kṛṣṇa, because no one is equal to or higher than Kṛṣṇa within any manifestation, spiritual or material. Everyone is below Him. No one can excel Him.
The Supreme Lord Kṛṣṇa has senses and a body like the ordinary man, but for Him there is no difference between His senses, body, mind and Himself. Foolish persons who do not know Him perfectly say that Kṛṣṇa is different from His soul, mind, heart and everything else. Kṛṣṇa is absolute; therefore His activities and potencies are supreme. It is also stated that He does not have senses like ours. He can perform all sensual activities; therefore His senses are neither imperfect nor limited. No one can be greater than Him, no one can be equal to Him, and everyone is lower than Him.
Whoever knows His transcendental body, activities and perfection, after quitting his body, returns to Him and doesn’t come back again to this miserable world. Therefore one should know that Kṛṣṇa’s activities are different from others. The best policy is to follow the principles of Kṛṣṇa; that will make one perfect. It is also stated that there is no one who is master of Kṛṣṇa; everyone is His servant. Only Kṛṣṇa is God, and everyone is servant. Everyone is complying with His order. There is no one who can deny His order. Everyone is acting according to His direction, being under His superintendence. As stated in the Brahmā-saṁhitā, He is the cause of all causes.

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