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बोधकथा अंतरयात्रा शिविर ओशो

एक गांव में एक गरीब किसान शहर से जाकर एक बकरी का बच्चा खरीद लाया। वह बकरी के बच्चे को लेकर अपने गाव की तरफ चला और शहर के दो चार बदमाश लोगों ने सोचा कि किसी भांति यह बकरी का बच्चा छीन लिया जाए तो अच्छा आज का भोजन का और एक उत्सव का आनंद आ जाएगा। कुछ मित्रों को बुला लेंगे और भोज हो जाएगा, लेकिन छीन कैसे लिया जाए?

वह गांव का गंवार बड़ा तगड़ा और मजबूत आदमी मालूम पड़ता था। वे शहर के शैतान जरा कमजोर थे। उससे छीनना झगड़े की बात थी, उपद्रव हो सकता था। तो फिर कोई होशियारी से काम लिया जाए। तो उन्होंने एक तरकीब तय की और जब वह गांव का आदमी शहर से बाहर निकलने को था, तो एक बड़े रास्ते पर उन पांच छह लोगों में से एक आदमी उसे मिला और कहा कि नमस्कार! जयराम जी।

उस आदमी ने कहा जयराम जी की, और उस आदमी ने ऊपर देखा और कहा कि अरे! यह आप कुत्ते का बच्चा सिर पर लिए चले जा रहे हैं? वह बकरी के बच्चे को अपने कंधे पर रख कर जा रहा था। यह कुत्ता कहां से खरीद लाए? बड़ा अच्छा कुत्ता ले आए! वह किसान आदमी हंसा। उसने कहा. पागल हो गए हैं आप? कुत्ता नहीं है, बकरी का खरीद कर लाया हूं बकरी का बच्चा है। उस आदमी ने कहा कि अरे, गांव में कुत्ते को लिए मत पहुंच जाना, नहीं तो लोग पागल समझेंगे। यह बकरी समझ रहे हो इसको?

और वह आदमी अपने रास्ते पर चला गया। और वह किसान हंसा कि बड़ी अजीब बात है। फिर भी उसने एक दफा पैर टटोल कर देखे कि कहीं कुत्ते के तो नहीं है, क्योंकि कोई आदमी को क्या प्रयोजन था। देखा कि बकरी ही है।

निश्चित होकर आगे बढ़ा था कि दूसरी गली पर दूसरा आदमी मिला। उसने कहा नमस्कार, बड़ा अच्छा कुत्ता ले आए हैं। मैं भी कुत्ता खरीदना चाहता हूं। कहां से खरीद लिया आपने? अब उतनी हिम्मत से वह किसान नहीं कह सका कि यह कुत्ता नहीं है। क्योंकि अब दूसरा आदमी कह रहा था और दो दो आदमी धोखे में नहीं हो सकते थे। फिर भी वह हंसा। और उसने कहा कि कुत्ता नहीं है साहब, बकरी है। वह आदमी कहने लगा, किसने कहा बकरी है? किसी ने बेवकूफ बनाया मालूम होता है। यह बकरी है? वह अपने रास्ते पर चला गया। उस आदमी ने फिर जाकर बगल की गली में उस बकरी को उतार कर देखा कि देख लेना चाहिए कि क्या गड़बड़ है, लेकिन बकरी ही थी। ये दो आदमी धोखा खा गए। लेकिन डर उसके भीतर भी पैदा हो गया कि मैं किसी भ्रम में तो नहीं हूं।

अब की बार वह उसको लेकर डरा डरा हुआ सा सड़क से जा रहा था कि तीसरा आदमी मिला। और उसने कहा नमस्कार! यह कुत्ता कहां से ले आए? अब की बार तो उसकी हिम्मत ही नहीं पड़ी कि यह कह दे कि यह बकरी है। उसने कहा कि जी, यहीं से खरीद लाया हूं। अब हिम्मत बहुत मुश्किल थी जुटानी कि कह सके कि यह बकरी है। थोड़ी देर में सोचा कि इसको गांव लेकर जाना कि नहीं, जो दों चार पांच रुपये गए सो एक तरफ, गांव में बदनामी होगी, लोग पागल समझेंगे।

जब वह यह सोच ही रहा था तो पांचवां आदमी मिला। और उसने कहा कि वाह, गजब कर दिया! आज तक कुत्ते को कंधे पर लिए किसी को नहीं देखा। क्या बकरी समझ रहे हो इसको?

उस आदमी ने देखा कि एकांत है, कोई नहीं है। उस बकरी को छोड़ कर वह भागा अपने गांव की तरफ कि इसे यहीं छोड़ देना बेहतर है। जो पांच रुपये गए वे गए, पागलपन से तो बच जाना चाहिए। वे पांच आदमी उस बकरी को उठा कर ले गए।

पांच आदमियों ने बार बार दोहराया और उस आदमी के लिए कठिनाई हो गई यह बात को मानने में कि जो पांच कहते हैं वे गलत कहते होंगे। और जब कहने वाले गेरुआ वस्त्र पहने हों, तब और मुश्किल हो जाती है। और जब कहने वाले सचाई और ईमानदारी के मूर्तिमंत रूप हों, तब तो और कठिन हो जाता है। और जब कहने वाले ईमानदार हों, जगत के त्याग करने वाले हों, तब तो और भी मुश्किल हो जाता है, क्योंकि उनकी बात पर अविश्वास करने की कोई वजह ही नहीं रह जाती। और यह भी जरूरी नहीं है कि वे आपको धोखा दे रहे हों। सौ में से निन्यानबे मौके ये हैं कि वे भी धोखा खाए हुए लोग हैं और उनको भी धोखा दिया गया है। वे बेईमान हैं यह जरूरी नहीं है, लेकिन वे भी उसी चक्कर में हैं जिसमें आप हैं।

 

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