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जब हवा चलती है

 Jab Hawa Chalti Hai Story

बहुत  समय  पहले  की  बात  है , आइस्लैंड के उत्तरी छोर पर  एक  किसान  रहता  था . उसे  अपने  खेत  में  काम  करने  वालों  की  बड़ी  ज़रुरत  रहती  थी  लेकिन  ऐसी  खतरनाक  जगह , जहाँ  आये  दिन  आंधी  –तूफ़ान  आते  रहते हों , कोई  काम  करने  को  तैयार  नहीं  होता  था .

किसान  ने  एक  दिन  शहर  के  अखबार  में  इश्तहार  दिया  कि  उसे   खेत  में   काम  करने  वाले एक मजदूर की  ज़रुरत  है . किसान से मिलने कई  लोग  आये  लेकिन  जो भी  उस  जगह  के  बारे  में  सुनता  , वो काम  करने  से  मन  कर  देता . अंततः  एक  सामान्य  कद  का  पतला -दुबला  अधेड़  व्यक्ति  किसान  के  पास  पहुंचा .

किसान  ने  उससे  पूछा  , “ क्या  तुम  इन  परिस्थितयों  में   काम  कर  सकते  हो ?”

“ ह्म्म्म , बस जब  हवा चलती  है  तब  मैं  सोता  हूँ .” व्यक्ति  ने  उत्तर  दिया .

किसान  को  उसका  उत्तर  थोडा अजीब  लगा  लेकिन  चूँकि  उसे  कोई  और  काम  करने  वाला  नहीं  मिल  रहा  था इसलिए  उसने  व्यक्ति  को  काम  पर  रख  लिया.

मजदूर मेहनती  निकला  ,  वह  सुबह  से  शाम  तक  खेतों  में  म्हणत  करता , किसान  भी  उससे   काफी  संतुष्ट  था .कुछ ही दिन बीते थे कि  एक   रात  अचानक  ही जोर-जोर से हवा बहने  लगी  , किसान  अपने  अनुभव  से  समझ  गया  कि  अब  तूफ़ान  आने  वाला  है . वह   तेजी  से  उठा  , हाथ  में  लालटेन  ली   और  मजदूर  के  झोपड़े  की  तरफ  दौड़ा .

“ जल्दी  उठो , देखते  नहीं  तूफ़ान  आने वाला  है , इससे  पहले  की  सबकुछ  तबाह  हो जाए कटी फसलों  को  बाँध  कर  ढक दो और बाड़े के गेट को भी रस्सियों से कास दो .” किसान  चीखा .

मजदूर बड़े आराम से पलटा  और  बोला , “ नहीं  जनाब ,X जब-हवा-चलती-हैX उत्तरी छोरX खतरनाकX इश्तहारX किसानX farmerX व्यक्तिX अनुभवX लालटेनX व्यवस्थित मैंने  आपसे  पहले  ही कहा था  कि  जब  हवा  चलती  है  तो  मैं  सोता  हूँ !!!.”

यह  सुन  किसान  का  गुस्सा  सातवें  आसमान  पर  पहुँच  गया ,  जी  में आया  कि  उस  मजदूर  को   गोली  मार  दे , पर  अभी  वो आने  वाले  तूफ़ान  से चीजों को बचाने  के  लिए  भागा  .

किसान खेत में पहुंचा और उसकी आँखें आश्चर्य से खुली रह गयी , फसल  की गांठें  अच्छे  से  बंधी  हुई   थीं  और  तिरपाल  से  ढकी  भी  थी , उसके  गाय -बैल  सुरक्षित बंधे  हुए  थे  और  मुर्गियां  भी  अपने  दडबों  में  थीं … बाड़े  का  दरवाज़ा  भी  मजबूती  से  बंधा  हुआ  था . साड़ी  चीजें  बिलकुल  व्यवस्थित  थी …नुक्सान होने की कोई संभावना नहीं बची थी.किसान  अब   मजदूर की ये  बात  कि  “ जब  हवा चलती है  तब  मैं  सोता  हूँ ”…समझ  चुका  था , और  अब  वो  भी  चैन  से   सो  सकता  था .

मित्रों ,  हमारी  ज़िन्दगी  में भी कुछ ऐसे तूफ़ान आने तय हैं , ज़रुरत इस बात की है कि हम  उस  मजदूर की  तरह पहले से तैयारी कर के रखें ताकि  मुसीबत  आने  पर  हम भी चैन  से  सो सकें.  जैसे कि यदि कोई विद्यार्थी शुरू से पढ़ाई करे तो परीक्षा के समय वह आराम से रह सकता है, हर महीने बचत करने वाला व्यक्ति पैसे की ज़रुरत पड़ने पर निश्चिंत रह सकता है, इत्यादि.

तो चलिए हम भी कुछ ऐसा करें कि कह सकें – ” जब हवा चलती है तो मैं सोता हूँ.”

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