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धर्म के आगे कुछ नहीं

धर्म के आगे कुछ नहीं
धर्म के आगे कुछ नहीं

गांधीजी के पुत्र मणिलाल एक बार बचपन में बहुत बीमार हो गए। डॉक्टर को बुलाया गया। डॉक्टर ने जांच के बाद कहा, बच्चे को मीट का शोरबा देना पड़ेगा।

बापू शाकाहारी थे। इसीलिए उन्होंने डॉक्टर से निवेदन किया कि वह बच्चे को शोरबे के बदले कोई और खाद्य बताएं। डॉक्टर ने इस पर झुंझलाती हुए कहा, बापू, आपके बच्चे की हालत बहुत खराब है। इस परिस्थिति में बच्चे के साथ आपको ऐसी सख्ती नहीं करनी चाहिए।

गांधी जी ने डॉक्टर को उत्तर दिया, डॉक्टर होने के नाते अपने मणिलाल के लिए जो पथ्य बताता है यह सही है। लेकिन मेरी जिम्मेदारी बहुत बड़ी है। अगर मणिलाल वयस्क होतो तो इसे आपकी इच्छानुसार करने की आज्ञा देता। पर इसके अबोध होने के कारण इसके बारे में मुझे ही विचार करना है।

ऐसे समय में धर्म की परीक्षा होती है। मनुष्य को मांस नहीं खाना चाहिए। इसे मैनें धर्म की मर्यादा ऐसे ही समय में मांस खाने से रोकती है। अतः मणिलाल को मैं शोरबा नहीं दूंगा। उसकी सिर्फ जल चिकित्सा करूंगा। और गांधीजी की जल चिकित्सा से मणिलाल कुछ दिनों से ही स्वस्थ्य हो गए।

In English

Gandhiji’s son Manilal became very ill once in his childhood. The doctor was called. The doctor said after examination, the child will have to give a meat broth.

Bapu was a vegetarian. That is why he requested the doctor to tell the child some food instead of the broth. The doctor said, “Bapu, your child’s condition is very bad. You should not do such strictness with the child in this situation.

Gandhi ji replied to the doctor, as a doctor, it is correct to say what the diet is for Manilal. But my responsibility is very big. If Manilal becomes an adult then it commands you to do as you wish. But due to its obscurity, I have to think about it only.

At such times, religion is examined. Humans should not eat meat. It prevents me from eating meat at the same time. So I will not give Manalal a broth. She will do her only water treatment. And with Gandhiji’s water treatment, Manilal has been healthy for some days.

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