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Tag Archives: brahmaand

काली मंत्र साधना एवं सिद्धि

Ghan Ghan Ghan Ghanta Baje Chamunda Ke Dware Per Bhajan

महाकाली, महाकाल की वह शक्ति है जो काल व समय को नियन्त्रित करके सम्पूर्ण सृष्टि का संचालन करती हैं। आप दसों महाविद्याओं में प्रथम हैं और आद्याशक्ति कहलाती हैं। चतुर्भुजा के स्वरूप में आप चारों पुरूषार्थों को प्रदान करने वाली हैं जबकि दस सिर, दस भुजा तथा दस पैरों से युक्त होकर आप प्राणी की ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों को गति …

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पैसा पाने के लिए पैसा दें (Give money to get money)

2000 thousand rupees in india

पैसा देना अपने जीवन में ज्यादा पैसा लाने की जबर्दस्त तकनीक है, क्योंकि यह करते समय दरअसल आप कहरहे हैं, “मेरे पास बहुत पैसा है।” हैरानी की कोई बात नहीं है कि दुनिया के सबसे दौलतमंद लोग सबसे बड़े दानवीर होते हैं। वे बहुत हड़ी रकम दान देते हैं और इसके बाद आकर्षण के नियम के माध्यम से ब्रह्मांड बदले …

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प्रेम शक्ति

प्रेम ब्रह्मांड की सबसे बड़ी शक्ति है । प्रेम का भाव सर्वोच्च है जिसे आप प्रेषित कर सकते हैं । अगर आप अपने हर विचार को प्रेम में सराबोर कर सकें, अगर आप हर वस्तु और व्यक्ति से प्रेम कर सकें, तो आपके जीवन का कायाकल्प हो जाएगा । आप अपने बुरे विचारों से किसी दूसरें का नहीं, सिर्फ अपना …

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पर्वों और त्यौहारों का महत्त्व क्यों ?

chalo man shri vrindavan dham bhajan

पर्व और त्यौहारों में मनुष्य के बीच, मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य को सर्वाधिक महत्त्व प्रदान किया गया है । यहां तक कि उसे पूरे ब्रह्मांड के कल्याण से जोड़ दिया है । इनमें लौकिक कार्यों के साथ ही धार्मिक तत्वों का ऐसा समावेश किया गया है, जिससे हमें न केवल अपने जीवन निर्माण में सहायता मिले, बल्कि समाज …

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जन्म और मृत्यु क्यों ?

Maiya Yashoda Jb Kahe Makhan chor hai gaval Story

सृष्टि में तीन प्रश्न महत्त्वपूर्ण हैं – हम क्यों जन्म लेते हैं ? हम कैसे जन्म लेते हैं ? मृत्यु के पश्चत हम कहा जाते हैं और कैसे रहते हैं ? वेदांत में इनका एक ही उत्तर है – जिसमें ये तीनों बातें विलीन हो जाती हैं उसे जानो । वह क्या है ? कौन है ? वह ब्रह्मा है …

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इंद्र का गर्व – भंग

शचीपति देवराज इंद्र कोई साधारण व्यक्ति नहीं, एक मन्वंतरपर्यन्त रहनेवाले स्वर्ग के अधिपति हैं । घड़ी – घंटों के लिए जो किसी देश का प्रधान मंत्री बन जाता है, उसके नाम से लोग घबराते हैं, फिर जिसे एकहत्तर दिव्य युगों तक अप्रतिहत दिव्य भोगों का साम्राज्य प्राप्त है, उसे गर्व होना तो स्वाभाविक है ही । इसलिए इनके गर्व भंग …

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