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Tag Archives: dukh

तू मेरा जीवन आसरा मेरे शहंशाह

You are my life, my king shelter

तू मेरा जीवन आसरा, मेरे शहंशाह, मेरीआं अखिआ  दे तारे मैं ता बस हुंण जी रही हां इक तेरे सहारे फड़ी ए बाहँ दाता देवीं तू छोड़ ना चरणा नाल लाइया ए दाता देवीं विछोड़ ना जदों दा असां तैनू जानिए, रंग मानिया, दुःख मिट गए ने सारे, मैं ता बस हुंण जी रही हां इक तेरे सहारे अठ्ठे पहर …

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चाणक्य नीति: तीसरा अध्याय (Chanakya Niti: Third Chapter)

Chanakya Niti

 1. इस दुनिया  मे ऐसा किसका घर है जिस पर कोई कलंक नहीं, वह कौन है जो रोग और दुख से मुक्त है.सदा सुख किसको रहता है? २. मनुष्य के कुल की ख्याति उसके आचरण से होती है, मनुष्य के बोल चल से उसके देश की ख्याति बढ़ती है, मान सम्मान उसके प्रेम को बढ़ता है, एवं उसके शारीर का गठन उसे भोजन …

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माँ नाल गल्लां करिये

Jai Jai Jagdeshvari Maa

माँ नाल गल्लां करिये सानु सद्देआं बड़ा चिर होया, सब नु बुलान वालिये विच गमां दे फस गयी जिंदड़ी, किस नु हाल सुनावां पूत कपूत सुनीदे दाती, मावां ठंडिया छावां मैं पापी जन्मा दा मैया, किस विद तैनू पावां दर दर भटका जगदम्बे, था था थेड़े खावां माँ नाल गल्लां करिये आई याद तेरी मैं बड़ा रोया, जग नु हसान …

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दु:ख में सुमिरन सब करै सुख में करै न कोय|

beet gaye din

दु:ख में सुमिरन सब करै, सुख में करै न कोय |दु:ख में सुमिरन सब करै, सुख में करै न कोय | दु:ख में सुमिरन सब करै, सुख में करै न कोय | जो सुख में सुमिरन करै, दु:ख काहे को होय कबीर, दु:ख काहे को होय ॥ दु:ख में सुमिरन सब करै, सुख में करै न कोय | दु:ख में …

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व्यर्थ है मोह का बंधन

vyarth hai moh ka bandhan

इतना मिल गया, इतना और मिल जाए फिर ऐसा मिलता ही रहें – ऐसे धन, जमीन, मकान, आदर, प्रशंसा, पद, अधिकार आदि की तरह बढ़ती हुई वृत्ति का नाम ‘लोभ’ है । जहां लड़ाई होती है, वहां समय, सम्पत्ति, शक्ति का नाश हो जाता है । तरह – तरह की चिंताएं और आपत्तियां आ जाती हैं । दो मित्रों में …

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योग – वियोग

Suni Kanha Teri Bansuri

जिसके साथ हमारा संबंध है नहीं, हुआ नहीं, होगा नहीं और होना संभव ही नहीं, ऐसे दु:खस्वरूप संसार – शरीर के साथ संबंध मान लिया, यहीं ‘दु:खसंयोग’ है । यह दु:खसंयोग ‘योग’ नहीं है । अगर यह योग होता अर्थात् संसार के साथ हमारा नित्य – संबंध होता, तो इस दु:खसंयोग का कभी वियोग (संबंध – विच्छेद) नहीं होता । …

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अद्भुत अतिथि सत्कार (Wonderful hospitality)

Wonderful hospitality

एक दिन एक व्याध भयानक वन में शिकार करते समय पत्थर – पानी – हवा की चोट से अत्यंत दुर्गति में पड़ गया । कुछ दूर आगे बढ़ने पर उसे एक वृक्ष दिखा । उसकी छाया में जाने पर उसे कुछ आराम मिला । तब तब उसे स्त्री – बच्चों की चिंता सताने लगी । इधर सूर्यास्त भी हो गया …

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श्रीकैकेयी और सुमित्रा माता के चरित्र से शिक्षा

shree kaikeyee aur sumitra maata ke charitr se shiksha

भरत माता श्री कैकेयी जी के चरित्रों से प्रकट और गुप्त – दो प्रकार की शिक्षाएं लौकिक तथा पारलौकिक रूपों में मिलती हैं । प्रथम प्रकटरूप में लोकशिक्षा को स्पष्ट किया गया है – जैसे कोई कैसा भी भला ऎघर क्यों न हो, घरवालों में परस्पर कैसी भी प्रीति क्यों न हो, घर की स्त्रियां कैसी भी सुयोग्य और सुबोध …

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श्रीलक्ष्मण जी के विशेष धर्म से शिक्षा

shree lakshman jee ke vishesh dharm se shiksha

हे नाथ ! यह दास स्वभाव से ही सत्य कह रहा है कि गुरु, माता, पिता तथा संसार में किसी को भी यह नहीं जानता । जहां तक प्रीति का, विश्वास का अथवा सांसारिक स्नेह के संबंध (नाते) का कोई आश्रय है, मेरे वह सब कुछ आप ही हैं । हे दीनबंधु ! हे उर – अंतर्यामी – साक्षात् परब्रह्म …

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मुनिवर गौतमद्वारा कृतघ्न ब्राह्मणों को शाप

Bhagwan Ki Nayayekarita avem Dayaluta

एक बार इंद्र ने लगातार पंद्रह वर्षों तक पृथ्वी पर वर्षा नहीं की । इस अनावृष्टि के कारण घोर दुर्भिक्ष पड़ गया । सभी मानव क्षुब्धा तृषा से पीड़ित हो एक दूसरे को खाने के लिए उद्यत थे । ऐसी बुरी स्थिति में कुछ ब्राह्मणों ने एकत्र होकर यह विचार किया कि ‘गौतम जी तपस्या के बड़े धनी हैं । …

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