एक साधु थे अत्यंत विनम्र, त्यागी और मधुरभाषी। उनका शिष्य वृंद काफी विशाल था। वे सदैव परोपकार में लगे रहते और सादा जीवन व्यतीत करते। जब उन्हें लगा कि अंतिम समय निकट आ गया है तो उन्होंने अपने सभी शिष्यों को बुलाया और बोले- देखो अब भगवान का बुलावा किसी भी समय आ सकता है। जाते जाते तुम्हें अंतिम उपदेश …
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चाणक्य नीति : द्वितीय अध्याय (Chanakya Niti: Chapter two)
1. झूठ बोलना, कठोरता, छल करना, बेवकूफी करना, लालच, अपवित्रता और निर्दयता ये औरतो के कुछ नैसर्गिक दुर्गुण है। 2.भोजन के योग्य पदार्थ और भोजन करने की क्षमता, सुन्दर स्त्री और उसे भोगने के लिए काम शक्ति, पर्याप्त धनराशी तथा दान देने की भावना – ऐसे संयोगों का होना सामान्य तप का फल नहीं है। ३. उस व्यक्ति ने धरती पर ही …
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