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अनुपम रूप नीलमणि को री

anupam roop neelamani ko ree

अनुपम रूप, नीलमणि को री उर धरि कर करि हाय! गिरत सोई, लखत बार इक भूलेहुँ जो री प्रति अंगनी छवि कोटि अनंगनी, सुषमा सुधा सार रस बोरी जिन हीन अंगनी नैनन निरखत, तिनहिन कहाँ कहा सरस बड़ो री नख-सिख लखि सखी! अंखियन हूँ ते, पल पल तलफति देखन को री कहा ‘कृपालु  गागर मह  सागर, आव न यतन करोड़ …

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