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Tag Archives: paramaatma

जानिए सिख धर्म को (Know Sikhism)

Ye Jag Dukh Ka Mela Hai Bhajan

सिख धर्म का उदय गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के साथ होता है। सिख का अर्थ है शिष्य। जो लोग गुरु नानक जी की शिक्षाओं पर चलते गए, वे सिख हो गए। यह धर्म विश्व का नौवां बड़ा धर्म है। भारत के प्रमुख चार धर्मों में इसका स्थान भी है। सिख धर्म की पहचान पगड़ी और अन्य पोशाकों से …

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भगवान श्रीकृष्ण

dasha mujh deen kee bhagavan sambhaaloge to kya hoga

श्रीविष्णु भगवान के मुख्य दस अवतारों में श्रीकृष्णावतार को जो महत्त्व प्राप्त है, वह अन्य किसी अवतार को नहीं है । कुछ लोग यह शंका उठाते हैं कि ‘पूर्णकाम’ अजन्मा भगवान अवतार क्यों लेते हैं ? इसका समाधान स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के वचन से ही हो जाता है । पानी में डूबते हुए अनन्यगति बालक को देखकर वत्सल पिता प्रेमविह्वल …

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संसारी – व्यवसायी में भेद

sansaaree - vyavasaayee mein bhed

बुद्धि दो तरह की होती है – अव्यवसायात्मिका और व्यवसायात्मिका । जिसमें सांसारिक सुख, भोग, आराम, मान आदि प्राप्त करने का ध्येय होता है, वह बुद्धि ‘अव्यवसायात्मिका’ होती है । जिसमें समता की प्राप्ति करने का, अपना कल्याण करने का ही उद्देश्य रहता है, वह बुद्धि ‘व्यवसायात्मिका’ होती है । अव्यवसायात्मिका बुद्धि अनंत होती है और व्यवसायात्मिका बुद्धि एक होती …

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जन्म – कर्म

Abhimanu Mahabharat Mahakavye

भगवान के जन्म – कर्म की दिव्यता एक अलौकिक और रहस्यमय विषय है, इसके तत्त्व को वास्तव में तो भगवान ही जानते है अथवा यत्किंचित उनके वे भक्त जानते हैं, जिनको उनकी दिव्य मूर्ति का प्रत्यक्ष दर्शन हुआ हो, परंतु वे भी जैसा जानते हैं कदाचित वैसा कह नहीं सकते । जब एक साधारण विषय को भी मनुष्य जिस प्रकार …

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योगेश्वर श्रीकृष्ण

Suni Kanha Teri Bansuri

रासलीला तथा अन्यान्य प्रकरणों में श्रीकृष्ण नाम के साथ महर्षि वेदव्यास के द्वारा ‘योगेश्वर’ शब्द का प्रयोग होते हुए देखकर साधारण पाठकों के हृदय में सन्देह उत्पन्न होता है कि इस प्रकार के पुरुष योगेश्वर कैसे हो सकते हैं । विदेशी लोगों ने तो भ्रमवश श्रीकृष्णभगवान को ‘INCARNATION OF LUST’ अर्थात् कामकलाविस्तार का ही अवतार कह दिया है । हमारे …

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परात्पर श्रीकृष्णावतार का प्रयोजन विमर्श

Abhimanu Mahabharat Mahakavye

दीनदयालु भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्णचंद्र के चरित्रावलोकन में सतत निमग्न रहनेवाले, ‘अनन्याश्चिन्तयन्तोमाम्’ इत्यादि वचन के अनुसार पराकाष्ठा की अनन्यतापर आरूढ़ हुए आश्रितों के लिए दीनबंधु परम प्रभु को क्या – क्या नहीं करना पड़ता है ? सब प्रकार की सेवा करना, दूत बनना, सारथि बनना और उसी समय गुरु बनकर उपदेश भी देना इत्यादि अनेक भाव से अपने आश्रितों को प्रसन्न …

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मोक्ष संन्यासिनी गोपियां

moksh sanyasini gopiya

  कुछ लोग प्रतिदिन सकामोपासना कर मनवाञ्छित फल चाहते हैं, दूसरे कुछ लोग यज्ञादि के द्वारा स्वर्ग की तथा (कर्म और ज्ञान) योग आदि के द्वारा मुक्ति के लिए पार्थना करते हैं, परंतु हमें तो यदुनंदन श्रीकृष्ण के चरणयुगलों के ध्यान में ही सावधानी के साथ लगे रहने की इच्छा है । हमें उत्तम लोक से, दम से, राजा से, स्वर्ग …

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सृष्टि तथा सात ऊर्ध्व एवं सात पाताल लोकों का वर्णन

sristi and sat udhrv avem sat patal loksristi and sat udhrv avem sat patal lok

    श्रीसूत जी बोले – मुनियो ! अब मैं कल्प के अनुसार सैकड़ों मन्वंतरों के अनुगत ईश्वर संबंधी कालचक्र का वर्णन करता हूं । सृष्टि के पूर्व यह सब अप्रतिज्ञात स्वरूप था । उस समय परम कारण, व्यापक एकमात्र रुद्र ही अवस्थित थे । सर्वव्यापक भगवान ने आत्मस्वरूप में स्थित होकर सर्वप्रथम मन की सृष्टि की । फिर अंहकार …

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चक्रपाणि

Chakerpani

  इस अपार पयोधि की अनन्त उत्ताल तरंगों में अनिलानल में, नक्षत्रपूर्ण नीलाकाश में, मधुर ज्योत्स्नामय सुधाकर में, उद्दीप्त प्रखर ज्योतिमान सूर्य में चक्रपाणि का दर्शन हो रहा है । अनन्त सौंदर्य के अधिष्ठातृ देव भगवान कमललोचन शांतरूपेण विराजमान हैं । भू:, भुव:, स्व: आदि सप्तलोक महाप्रभु की एक अंगुली पर भ्रमित चक्रपर घुम रहे हैं । मृत्युलोकवासी अपनी भाषा …

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आदिगुरु श्रीकृष्ण

Adi Guru Shri Krishan

वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् । देवकीपरमानंद कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।यह संसार एक बहुत बड़ी पाठशाला है । इसमें अगणित जीव शिक्षा ग्रहण करने के लिये आते हैं, और यथाधिकार निर्दिष्ट काल तक शिक्षा – लाभ कर चले जाते हैं, और फिर कुछ विश्राम के पश्चात् पुन: नये वेशभूषा के साथ इसमें आकर प्रवेश करते हैं । कहने का आशय यह है …

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