पूजा करो हनूमान की, बोलो राम राम जी पीला पीताम्बर मेरे राम और लक्ष्मण लाल लंगोट हनुमान जी, राम राम केसर तिलक मेरे राम और लक्ष्मण लाल सिन्दूर हनुमान जी, राम राम खट्टे मीठे मेरे राम और लक्ष्मण चूरमे का लड्डू हनुमान जी, राम राम रावण को मारा मेरे राम और लक्ष्मण लंका जलाई हनुमान जी, राम राम सोने …
Read More »Tag Archives: Raam
ना स्वर है ना सरगम है
ना स्वर हैं, ना सरगम हैं, ना लय न तराना है। बजरंग के चरणो में एक फूल चढ़ाना है॥ तुम बाल समय में प्रभु, सूरज को निगल डाले, अभिमानी सुरपति के, सब दर्प मसल डाले, बजरंग हुए तब से, संसार ने जाना है। बजरंग के चरणो में एक फूल चढ़ाना है॥ जब राम नाम तुमने, पाया ना नगीने में, तुम …
Read More »जानिये तुलसीदास जी के बारे में (Learn about Tulsidas)
श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गोस्वामी तुलसीदास की जयंती मनाई जाती है। इस बार उनकी जयंती 10 अगस्त, बुधवार को है। तुलसीदासजी ने ही श्रीरामचरितमानस की रचना की है। अपने जीवनकाल में उन्होंने 12 ग्रंथ लिखे। उन्हें संस्कृत विद्वान होने के साथ ही हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ कवियों में एक माना जाता है। तुलसीदासजी …
Read More »ओ मईया तैने का ठानी मन में
ओ मईया तैने का ठानी मन में, राम-सिया भेज दइ री वन में -२ हाय री तैने का ठानी मन में, राम-सिया भेज दइ री वन में -२ यधपि भरत तेरो ही जायो, तेरी करनी देख लज्जायो, अपनों पद तैने आप गँवायो भरत की नजरन में, राम-सिया भेज दइ री वन में , हठीली तैने का ठानी मन में, राम-सिया …
Read More »तेरा झूठा मोह जगत में (Yours false attachment with world)
तेरा झूठा मोह जगत में तोते से बोली मैना गैरों से मतलब क्या है अपनों से बच के रहना श्री राम हुए वनवासी अपनो से धोखा खाया वो मोसी भी अपनी थी जिसने वनवास दिलाया सब आनी जानी माया सुख है तो दुःख भी सहना गैरो से मतलब क्या है अपनों से बचके रहना श्री कृष्ण हुये अवतारी जाने जन्म …
Read More »एक पत्नीव्रत धर्म
श्रीरघुनाथ जी ने अकनारीव्रत को चरितार्थ करके महान आदर्श उपस्थित कर दिया । यद्यपि आपको स्मृतिकारों के प्रमाणनुसार चार विवाहों की प्रचलित प्रथा की मर्यादा स्वीकार थी, परंतु इधर एकपत्नीव्रत को ही पुष्ट करना था । इसलिए एक सीता जी के साथ ही विवाह की चारों रीतियां पूरी कर ली गयीं । जैसे – 1) गांधर्व विवाह फुलवारी में हुआ …
Read More »श्रीहरि भक्ति सुगम और सुखदायी है
भोजन करिअ तृपिति हित लागी । जिमि सो असन पचवै जठरागी ।। असि हरि भगति सुगम सुखदाई । को अस मूढ़ न जाहि सोहाई ।। भाव यह कि भगवद्भक्ति मुंह में कौर ग्रहण करने के समान ही सुगम है – ‘भोजन करिअ तृपिति हित लागी ।’ वैसे ही वह सुखदायी भी है – ‘जिमि सो असन पचवै जठरागी ।।’ जिस …
Read More »श्रीकैकेयी और सुमित्रा माता के चरित्र से शिक्षा
भरत माता श्री कैकेयी जी के चरित्रों से प्रकट और गुप्त – दो प्रकार की शिक्षाएं लौकिक तथा पारलौकिक रूपों में मिलती हैं । प्रथम प्रकटरूप में लोकशिक्षा को स्पष्ट किया गया है – जैसे कोई कैसा भी भला ऎघर क्यों न हो, घरवालों में परस्पर कैसी भी प्रीति क्यों न हो, घर की स्त्रियां कैसी भी सुयोग्य और सुबोध …
Read More »भक्तवत्सलता
जिस भक्त पर भगवान श्रीराम की ममता (अपनापन) और प्यार हो गया, फिर उस पर करुणा के सिवा उन्हें कभी क्रोध आता ही नहीं । वे अपने भक्त के दोष को आंखों से देखकर भी ध्यान में नहीं लाते और यदि कहीं उसका गुण सुनने में भी आ गया तो संत – समाज में उसकी प्रशंसा करते हैं । भला, …
Read More »श्रीलक्ष्मण जी के विशेष धर्म से शिक्षा
हे नाथ ! यह दास स्वभाव से ही सत्य कह रहा है कि गुरु, माता, पिता तथा संसार में किसी को भी यह नहीं जानता । जहां तक प्रीति का, विश्वास का अथवा सांसारिक स्नेह के संबंध (नाते) का कोई आश्रय है, मेरे वह सब कुछ आप ही हैं । हे दीनबंधु ! हे उर – अंतर्यामी – साक्षात् परब्रह्म …
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