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गुरु सत्संग है प्राण से प्यारा

shankar

इसमे बहेती है अमर्टधारा अमर्टधारा, अमर्टधारा… कितने जन्मों से प्यासा तू कभी संभला और कभी गिरा तू गुरु वाणी ने तुजको पुकारा इसमे बहेती है… छोड़ अहम को जा तू शरण में दल दुखों की गटरी चरण में इन चरनो ने सबको है तारा इनमें बहेती है… ज़हर तेरा वो पीले क्षण में प्रलय हो जाए कर्मों के पल में …

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