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कृपा का अनुभव

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कृपा का अनुभव

एक बार गायों को चराते हुए भगवान श्री कृष्ण और बलराम जी को भूख लगीं तो उन्होंने अपने सखाओं से कहा -हे मित्र ! यहाँ पास ही में कुछ ब्राह्मण यज्ञ कर रहे हैं तुम उनसे हम सबके लिए कुछ भोजन माँग लाओ।
ग्वाल-बाल गए और बड़े विनम्र भाव से प्रार्थना कर भोजन सामग्री माँगी परंतु ब्राह्मण लोग स्वर्ग-आदि लोक के सुख की कामनाओं की पूर्ति के लिए उस यज्ञ में इतने खो चुके थे कि उन्होंने इस बात की तरफ़ ग़ौर ही नहीं किया कि यह अन्न स्वयं भगवान श्री कृष्ण माँग रहे हैं।
ग्वाल बाल ख़ाली हाथ जब लौटकर आए तो प्रभु ने कहा अब तुम उनकी पत्नियों से जाकर माँगना।
ग्वाल बाल गए और जैसे ही ब्राह्मणों की पत्नियों ने सुना कि श्री कृष्ण पास ही हैं और उन्हें भूख भी लगी है। तो इतने समय से जिन नंदलाल की लीला-कथा वे सुनतीं आयीं ,”आज उनका दर्शन होगा “, ऐसा सोचकर वे लोक लाज का त्याग कर अपने भाई-बंधुओं और पति (ब्राह्मणों) की आज्ञा को छोडकर प्रभु के पास आयीं और उन्हें मीठे दही- भात का भोग लगाया।
ब्राह्मणों ने उन्हें यहाँ तक कह दिया था कि अगर आज तुम चलीं गयीं तो हम से नाता तोड़कर ही जाना , वे फ़र भी आ गयीं।
ब्राह्मण की पत्नियों ने केवल भगवान की लीला-कथा को सुना था, अभी तक दर्शन नहीं किया था और उसी साधन के ही प्रभाव से देखिए आज प्रभु स्वयं उनसे भोजन माँगकर अपने दर्शन का आनंद देना चाह रहे हैं । धन्य हैं वो लोग जिनका जीवन ही प्रभु की कथा है । हमें भी प्रभु की कथा ही प्राप्त है, बस उसी को नित्य साधन समझ हमें उनके दर्शन को पाने में रत रहना है।
भगवान श्री कृष्ण के सम्मुख आज ब्राह्मण-पत्नियाँ हाथ में दही-भात और चारों प्रकार के व्यंजन लिए खड़ी हैं । ग्वाल-वालों के साथ जैसे ही उन्हें पेड़ की छांव में उस कृष्ण बलराम की युगल छवि का दर्शन हुआ तो एक क्षण को तो मानो समय ही रुक गया।
उनके मुख से अनायास ही निकल पड़ा , ” प्रभु ! कितने सुंदर हैं ।” प्रभु अपनी पूर्ण छटा के साथ उन्हें दर्शन दे रहे हैं।
मानो आज उन स्त्रियों की जन्म-जन्म की साधना सफल हो गयी।
भगवान ने उनका स्वागत कर उनका धन्यवाद किया और कहा , ”धन्य हैं आप ! जो हमारी अन्न की याचना स्वीकार की ( सबका पेट भरने वाले ये बात बोल रहे हैं, देखिए उनकी लीला) और आपको मेरे दर्शन की लालसा थीं , अब आप दर्शन कर चुकी हैं , इसलिए घर लौट जाइए । आपके पति ब्राह्मण देव आपके बिना यज्ञ पूरा नहीं कर सकते।”
यज्ञ-पत्नियों ने कहा प्रभु हम उनसे लड़कर, सब बंधनों का त्याग करके आपके पास आयीं हैं। और एक बार जो आपका हो जाता है , जिसे आप एक बार स्वीकार कर लेते हैं उसे संसार में दोबारा नहीं जाना पड़ता न प्रभु , तो आप हमें ऐसी आज्ञा मत दीजिए।
प्रभु बोले , ”जो मेरा हो जाता है , मैं जिसे स्वीकार कर लेता हूँ , उसे संसार के लोग चाह कर भी नहीं त्याग सकते,आप अपने-अपने घर लौट जाइए , आपके साथ कोई दुर्व्यवहार और आपका किसी भी प्रकार से त्याग नहीं होगा।”
भगवान श्री कृष्ण ने पहले सभी ग्वाल बालों को वो प्रेम से लाया गया भोजन खिलाया और फिर स्वयं खाया । हमें प्रभु से यह भी सीखना है कि सामूहिक भोजन करने का तरीक़ा यही है।
इधर यज्ञ-पत्नियाँ जब घर पहुँची तो ब्राह्मणों ने उन्हें कुछ नहीं कहा , बल्कि सत्कार करके उन्हें यज्ञ में बैठने को कहा , यज्ञ-पत्नियों ने सारा वृतांत सुनाया और बताया की *नंद के लाला साक्षात भगवान हैं । जब उन्हें इस बात का बोध हुआ कि हाँ ! ग्वाल-बाल आए थे और हमसे अन्न की याचना भी की थी और हम कर्म-कांड लेकर बैठे रहे तो ब्राह्मणों को अत्यंत क्षोभ हुआ।
वे अपने आप को कोसने लगे–हाय रे विधाता ! ये हम से कैसा गुनाह हो गया। प्रभु ने सामने से अपना हाथ बढ़ा कर हमें दर्शन देना चाहा और हम ही मुँह फेर कर बैठे रहे।
वे उनके चरणों में गिर पड़े और चरण धूल लगाने लगे । धन्य हैं आप ! बोल-बोलकर उनका सत्कार किया और पछताने लगे।
ये प्रसंग हमें समझाता है कि किस प्रकार घर रहकर भी प्रभु को साक्षात पाया जा सकता हैं । यज्ञ-पत्नियों को प्रभु ने घर छोड़ने के लिए आदेश नहीं दिया है आप दर्शन कर सकते हैं लीला में, बल्कि घर में रहकर भजन करने की आज्ञा दी है । और यह जो ब्राह्मण पछता रहें हैं ना, यह हम जीव हैं जो प्रभु के दर्शन की दस्तख को पहचान नहीं पा रहे हैं । उनसे मुँह फेर कर बैठे हैं।
उनकी प्राप्ति हर जगह हर अवस्था में सम्भव है , चाहिए तो केवल उनके लिए प्रेम-समर्पण और बरसती हुई अनवरत कृपा का अनुभव।

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