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चाय की अंतिम प्याली

चाय की अंतिम प्याली
चाय की अंतिम प्याली

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

ऐसा नही है  कि पहली बार पत्नी”स्वाति”के बिना अकेले सो रहा था कई बार ऑफिस के काम से बाहर जाता था पर आज पहली बार ,अपने शयनकक्ष मे अकेले सो रहा था रात के 2 बज गए थे पर गौरव की आँखों मे नींद का पता ही नही था । सोचता रहा ना जाने 30 सालों में कितनी ही राते स्वाति मेरे बगैर इस कमरे में अकेली सोई होगी कितना तड़पती होगी , कितना इंतज़ार की होगी ,और आज एक रात मुझसे काटे नही कट रही । कभी शिकायत भी नही करती थी, हाँ कभी कभी बोलती जरूर थी कुछ पल मेरे हिस्से का मुझे बिन मांगे ही दे दिया करो ,और गौरव अक्सर कहता कि रिटायरमेंट के बाद का पूरा समय सिर्फ तुम्हारा होगा । और वो आश्वस्त हो जाती ।

गौरव लेट-लेटे याद करने लगा कि शादी के लिए 26 लड़कियों को रिजेक्ट किया था तब कहीं जाके स्वाति पसँद आयी थी बेहद खूबसूरत नैन नख्श , चंचल, पढ़ी लिखी संस्कारी और हर काम मे कुशल थी तभी तो शादी के 30 साल कैसे बीते पता ही नही चला बड़ी बेटी,रिया की शादी भी हो गयी बेटा” अथर्व” भी मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पोस्ट पर सेट हो गया अब बस बेटे के शादी के बाद सब जिम्मेदारी खत्म और फिर रिटायरमेंट के बाद कि जिंदगी कितनी सुकून भरी होगी , यही सब सोचते हुए कब आंख लगी उनको पता ही नही चला ………

चूडियों की मधुर खनक से नींद खुली तो देखा , स्वाति आईने के पास खड़ी अपने गीले बालों को कपड़े से झटक कर सुखा रही थी माथे पे सिंदूर लगाते हुये उनकी नजऱ एकटक देख रहे गौरव पर पड़ी , मुस्कुराते हुए बोली क्या हुआ ,…ऐसे क्या देख रहे हो ,गौरव ने इशारे से अपने पास बुलाया स्वाति पलँग के एक किनारे बैठ ही रही थी कि गौरव आगे बढ़कर स्वाति को अपने बाहों में भींच लिया ,और अपलक देखते रह अपनी स्वाति को जैसे आज से पहले कभी ना देखा हो स्वाति कहती रही आज क्या हुआ है आपको , गौरव बोला नही स्वाति ,

अब नही एक पल भी तुझसे दूर नही रह सकता जो बात तुमने कभी नही बोली वो सारी बात इस कमरे की दीवारों ने कह दी मुझसे , साथ रह कर भी कितना दूर था मैं तुझे आज एहसास हो गया है , मैं आज आखरी बार ऑफिस जाऊँगा उसके बाद मेरे जीवन का हर पल सिर्फ तुम्हारा होगा , स्वाति बीच मे ही बोली पर आपके रिटायरमेंट को अभी कुछ साल बाकी है ,…जनता हूँ

पर मैं आज ही इस्तीफ़ा देने का निर्णय किया है ।गौरव की बात सुन कर स्वाति के आँख भर आये , आज दोनो एक साथ भीग रहे थे स्वाति के गीले बालों से गौरव , और स्वाति उनके प्रेम सुधा से तरबतर हो गयी थी ,स्वाति को लगा मानो पूरी जिंदगी उस पल में सिमट आयी हो ,उनके बाहों के गिरफ्त से आजाद नही होना चाहती थी , फिर भी की सबके लिए चाय बनानी है कहते हुई कसमसाने लगी गौरव ने भी बाहों की पकड़ ढीली कर दी।स्वाति किचन की ओर जाने लगी गौरव ,उसके चल को देखकर मुस्कारते हुए मन मे बोला इतने सालों बाद भी इसकी कमर की लचक गज़ब की है …..

काफ़ी देर बाद भी स्वाति चाय लेकर नही लौटी तो ,गौरव ने जोर इस आवज लगाई अब तक चाय नही बनी क्या ……उनकी आवज सुनकर उनकी बेटी रिया दौड़ते हुए कमरे में , आयी क्या हुआ पापा ???

गौरव बोले देखो ना कब से तुम्हारी मम्मी चाय बना रही है ,आवाज देने पर भी नही सुनती है …..रिया रोते हुये बोली आपने आवाज , लगाने में देर कर दी पापा , मम्मी तक आपकी आवाज़ पहुँच ही नही पाएगी । होश में आओ पापा सम्भालो अपने आपको ,कल ही तो एक बार फिर से दुल्हन बनाकर विदा किये हो अपने हाथों से यमराज की डोली में बैठा कर , रिया की बात सुनकर गौरव , हिर्दय विदारक क्रंदन करते हुए,मुझे प्रायश्चित का एक मौका तो दिया होता स्वाति…….कहते हुए बेसुध हो गया गौरव…

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khilji

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