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नागपंचमी

58कैसे करें नागपंचमी के दिन नागदेव का पूजन

नागपंचमी पर आराधना से होता है सर्पदोष दूर

पूरे भारत भर में नाग पूजा प्राचीन काल से चली आ रही है। श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन ‘नागपंचमी का पर्व’ परंपरागत श्रद्धा एवं विश्वास के साथ मनाया जाता है। इस दिन नागों का पूजन किया जाता है। इस दिन नाग दर्शन का विशेष माहात्म्य है।

इस दिन सांप मारना मना है। पूरे श्रावण माह विशेष कर नागपंचमी को धरती खोदना निषिद्ध है। इस दिन व्रत करके सांपों को खीर खिलाई व दूध पिलाया जाता है। कहीं-कहीं सावन माह की कृष्ण पक्ष की पंचमी को भी नागपंचमी मनाई जाती है। खास तौर पर इस दिन सफेद कमल पूजा में रखा जाता है।

नागपंचमी के दिन क्या करें
इस दिन नागदेव के दर्शन अवश्य करना चाहिए।
बांबी (नागदेव का निवास स्थान) की पूजा करना चाहिए।
नागदेव को दूध भी पिलाना चाहिए।
नागदेव की सुगंधित पुष्प चंदन से ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि नागदेव को सुगंध प्रिय है।
कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा का जाप करने से सर्प दोष दूर होता है।

नाग पूजन कैसे करें

– अलसुबह उठकर घर की सफाई करके नित्यकर्म से निवृत्त हो जाएं।
– तपश्चात स्नान कर धुले हुए साफ एवं स्वच्छ कपड़े धारण करें।
– नाग पूजन के लिए सेंवई-चावल आदि ताजा भोजन बनाएं।
– कुछ भागों में नागपंचमी से एक दिन पहले ही भोजन बना कर रख लिया जाता है और नागपंचमी के दिन बासी (ठंडा) खाना खाया जाता है।
– इसके बाद दीवार पर गेरू पोतकर पूजन का स्थान बनाया जाता है। फिर कच्चे दूध में कोयला घिसकर उससे गेरू पुती दीवार पर घर जैसा बनाते हैं और उसमें अनेक नागदेवों की आकृति बनाते हैं।
– कुछ जगहों पर सोने, चांदी, काठ व मिट्टी की कलम तथा हल्दी व चंदन की स्याही से अथवा गोबर से घर के मुख्य दरवाजे के दोनों बगलों में पांच फन वाले नागदेव अंकित कर पूजते हैं।
– सर्वप्रथम नागों की बांबी में एक कटोरी दूध चढ़ा आते हैं।
– फिर दीवार पर बनाए गए नागदेवता की दही, दूर्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, जल, कच्चा दूध, रोली और चावल आदि से पूजन कर सेंवई व मिष्ठान से उनका भोग लगाते हैं।
– पश्चात आरती करके कथा का श्रवण किया जाना चाहिए।

नागपंचमी व्रत

नागपंचमी व्रत पूजन विधि
यह त्यौहार सांप या नाग की सफेद कमल से पूजा कर मनाया जाता है. सामान्यतः लोग मिट्टी से विभिन्न आकार के सांप बनाते हैं तथा उसे विभिन्न रंगों से सजाते हैं. मिट्टी से बने सांप की मूर्ति को किसी मंच पर रखा जाता है तथा उन पर दूध अर्पित की जाती है. महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ भागों में नाग देवता के स्थायी मंदिर हैं जहां उनकी विशेष पूजा काफी धूमधाम से की जाती है. यह दिन सपेरों के लिए भी विशेष महत्व का होता है, उन्हें दूध और पैसे दिए जाते हैं. इन दिनों मिट्टी की खुदाई पूरी तरह से प्रतिबंधित है.

गरुड़ पुराण के अनुसार घर के प्रवेश द्वार पर नाग का चित्र बनाया जाता है तथा उनकी पूजा की जाती है. इसे ‘भित्ति चित्र नाग पूजा’ के नाम से भी जाना जाता है. महिलाएं ब्राह्मणों को भोजन, लड्डू तथा खीर ( चावल, दूध तथा चीनी से बना एक विशेष खाद्य) देती हैं. ये ही वस्तुएं सांप को तथा सांप के बिल पर भी अर्पण की जाती हैं.

Nag Panchami Katha or Story in Hindi: नाग पंचमी कथा
नाग पंचमी की पूजा के पीछे कई कथाएं हैं जिसमें से एक काफी प्रचलित है.

एक समय एक किसान था जिसके दो पुत्र तथा एक पुत्री थी. एक दिन जब वह अपने खेत में हल चला रहा था, उसका हल सांप के तीन बच्चों पर से गुजरा और सांप के बच्चों की मौत हो गई. अपने बच्चों की मौत को देख कर उनकी नाग माता को काफी दुख हुआ.. नागिन ने अपने बच्चों की मौत का बदला किसान से लेने का निर्णय किया. एक रात को जब किसान और उसका परिवार सो रहा था, नागिन ने उनके घर में प्रवेश कर गई. उसने किसान, उसकी पत्नी और उसके दो बेटों को डस (काट) लिया. इसके परिणाम स्वरूप सभी की मौत हो गई. किसान की पुत्री को नागिन ने नहीं डसा था जिससे वह जिंदा बच गई. दूसरे दिन सुबह नागिन फिर से किसान के घर में किसान की बेटी को डसने के इरादे से गई. किसान की पुत्री काफी बुद्धिमान थी . उसने नाग माता को प्रसन्न करने के लिए कटोरा भर कर दूध दिया तथा हाथ जोड़कर प्रार्थना की नागिन उसके पिता को अपने प्रिय पुत्रों की मौत के लिए माफ कर दे. उसने नागिन का स्वागत किया और उसके माता-पिता को माफ कर देने की प्रार्थना की. नाग माता इससे काफी प्रसन्न हुई तथा उसने किसान, उसकी पत्नी और उसके दोनों पुत्रों को, जिसे उसने रात को काटा था, जीवन दान दे दिया. इसके अलावा नाग माता ने इस वायदे के साथ यह आशीर्वाद भी दिया कि श्रावण शुक्ल पंचमी को जो महिला सांप की पूजा करेगी उसकी सात पीढ़ी सुरक्षित रहेगी .

वह नाग पंचमी का दिन था और तब से सांप दंश से रक्षा के लिए सांपों की पूजा की जाती है.

नाग गायत्री मंत्र
ओम नवकुलाए विदमाह् विषदन्ताय् धीमही तनो सर्पः प्रचोदयात

नाग पंचमी और वर्तमान समय
सही मायने में नागपंचमी का त्यौहार हमें नागों के संरक्षण की प्रेरणा देता है. पर्यावरण की रक्षा और वनसंपदा के संवर्धन में हर जीव-जंतु की अपनी भूमिका तथा योगदान है, फिर सर्प तो लोक आस्था में भी बसे हुए हैं.

लेकिन अब भारतीय संस्कृति में पूजनीय नागों को व्यापारिक लाभ के लिए मारा और बेचा जाता है. सांपों की खाल, जहर और अन्य उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी मंहगे बिकते हैं जिनकी मांग भी काफी है और यही वजह भी है कि सांपों या नागों को अंधाधुंध मारा जाता है. वन विभाग और सरकार की तरफ से सांपों को संरक्षित करने के कई उपाए तो किए जा रहे हैं लेकिन सांपों के इलाके में मानवों की चहल पहल ने इन शांत जीवों को उग्र होने पर विवश कर दिया है.

नाग पंचमी का त्यौहार मनाते हुए हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि आगे से किसी भी ऐसे प्रसाधन या उत्पाद का इस्तेमाल नहीं करेंगे जिसमें सांपों या नागों का प्रयोग हुआ हो. आशा करते हैं कि भविष्य में हमारे बच्चे भी इन सांपों या नागों को देख सकेंगे और हमारी संस्कृति से रूबरू हो सकेंगे.

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