एक बार कुछ शिकारी एक लोमड़ी का पीछा कर रहे थे। लोमड़ी बहुत तेज़ दौड़ी और शिकारियों की नज़रों से ओझल हो गई। तभी लोमड़ी ने एक घर देखा। उसने जल्दी से उस घर का दरवाज़ा खटखटाया।
वह एक लक्कड़हारे का घर था। लक्कड़हारे से लोमड़ी ने अपनी जान बचाने की विनती की। वह मान गया और उसे अपने घर में छुपा लिया। जल्दी ही शिकारी वहाँ आ गए और लोमड़ी के बारे में पूछने लगे।
हालांकि लक्कड़हारे ने उन्हें मुँह से कुछ नहीं कहा, परंतु उसने इशारे से उन्हें लोमड़ी के बारे में बताने की कोशिश की। लेकिन शिकारी उसका इशारा नहीं समझ पाये और वहाँ से चले गए।
जब लोमड़ी वहाँ से जाने लगी तो लक्कड़हारा बोला-” मुझे धन्यवाद नहीं करोगी?” लोमड़ी ने जवाब दिया- “किस लिए तुम्हारा धन्यवाद कर? उन शब्दों के लिए जो तुमने नहीं कहे या उन शब्दों के लिए जो वो लोग समझ नहीं पाए?”