एक लोमड़ी के पीछे शिकारी पड़े थे। लोमड़ी भागते-भागते एक लकड़हारे के पास पहुंची और उससे शरण माँगने लगी।
लकड़हारे ने अपनी झोपड़ी की ओर इशारा करते हुए लोमड़ी से उसमें छिप जाने को कह दिया। थोड़ी ही देर में शिकारी वहाँ आ पहुंचे। उन्होंने लकड़हारे से पूछा, “क्या तुम्हें कोई लोमड़ी दिखी यहाँ?”
लकड़हारे ने जवाब दिया, “नहीं,” लेकिन चुपचाप अपनी झोपड़ी की ओर इशारा कर दिया। शिकारी उसके इशारे को नहीं समझ पाए और वहाँ से चले गए।
लोमड़ी झोपड़ी से बाहर निकलकर आई और भागने लगी। लकड़हारे ने उसे आवाज लगाई और कहा,
“तुम कितनी कृतघन हो! अपनी जान बचाने के लिए तुमने मुझे धन्यवाद तक नहीं दिया!”
लोमड़ी रूखे स्वर में बोली, “अगर तुम्हारे बोल की तरह तुम्हारे इशारे भी भरोसे लायक होते तो मैं तुम्हें धन्यवाद जरूर देती।”
Moral of Story
शिक्षा: कई बार एक हल्का-सा इशारा, बोले गए शब्दों से ज्यादा बुरे होते हैं।