एक दिन एक चरवाहा अपनी बकरियों को लेकर पास के जंगल में चराने गया । अचानक तेज बारिश होने लगी और वह अपनी बकरियों को हाँककर पास की एक गुफा में ले गया।
चरवाहे ने जब देखा कि वहाँ पहले से कुछ जंगली बकरियाँ शरण लिये हुए हैं तो वह बहुत खुश हुआ। उसने सोचा, ‘इन बकरियों को भी अपनी बकरियों के झुंड में मिला लूंगा।’
यह सोचकर चरवाहा जंगली बकरियों की खूब देखभाल करता। उन्हें हरे पत्ते और घास खिलाता और अपनी बकरियों पर जरा भी ध्यान नहीं देता था।
इसलिए वे दिनोंदिन कमजोर होती जा रही थीं। कई दिनों के बाद बरसात रुकी और बरसात रुकते ही जंगली बकरियाँ जंगल में भाग गईं।
चरवाहे ने सोचा, ‘चलो कोई बात नहीं। अपनी बकरियाँ तो हैं ही। किंतु उस वक्त उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, जब उसने देखा कि सब बकरियाँ भूख से मरी पड़ी हैं। चरवाहा बोला
“मेरे जैसा मूर्ख व्यक्ति दूसरा नहीं होगा जो कि जंगली बकरियों के लालच में अपनी बकरियों से भी हाथ धो बैठा।” फिर पछतावे से हाथ मलता वह अपने घर लौट गया।
शिक्षा : हमें संतोषी प्रवृत्ति अपनानी चाहिए।