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अब के तो काम दा म्हारी भी बनाओ ना बिगड़ी सबकी बनाई

अब  कह तो काम दहा म्हारी भी बनाओ ना बिगड़ी सबकी बनाई

बनी बनी का सब कोई साथी , बिगड़ी में कोई काम ना आवे
बिगड़ी मैं तो वहीं बनेगा, जाके सर पर दीनानाथ बहाई रे

भक्त पहलाद की ऐसी बनाई, अगनजाल से लियो बचाए
ध्रुव रे भगत को तेने, राज दिल आया रे

पाप की हत्या लखीना जावे, जो लिख दी तने दफ्तर चढ़ाई
ऊंचे जाते नीचे कुल प्यारे, करके गुमान तले तन क्यों बिगाड़ा रे

कह तो पंख गरुड़ का टूटिया, कै निंद्रा ने लिया जगाई
लाल दास दादू जी के सारणे, मोपे तो करता तेरी बन नहीं पाई रे

नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे ढूँढूँ रे सांवरिया
कान्हा – कान्हा  रट के मैं तो हो गई रे बावरिया

बेदर्दी मोहन ने मोहे फूँका ग़म की आग में
बिरहा की चिंगारी भर दी दुखिया के सुहाग में
पल-पल मनवा रोए छलके नैनों की गगरिया
नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे…

आई थी अँखियों में लेकर सपने क्या-क्या प्यार के
जाती हूँ दो आँसू लेकर आशाएं सब हार के
दुनिया के मेले में लुट गई जीवन की गठरिया
नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे…

दर्शन के दो भूखे नैना जीवन भर न सोएंगे
बिछड़े साजन तुमरे कारण रातों को हम रोएंगे
अब न जाने रामा कैसे बीतेगी उमरिया
नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे…

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