एक बार, एक आदमी बहुत अच्छी पेंटिंग बनाता था। वे रोज सुबह बाजार में जाता और अपने पेंटिंग को 500 रूपए में बच कर घर आता था। इस तरह से वे महीने के 15,000 रूपए कमाते थे। ऐसेही उसका गुजारा होता था।
वे आदमी रोज शाम को एक पेंटिंग बनाता था और सुबह उसको बेचने चला जाता था। ऐसेही बहुत साल गुजर गए। उस आदमी की उम्र भी बहुत हो गयी। उसकी उम्र इतनी ज़ादा हो चुकी थी की उसके लिए अब पेंटिंग बनाना बहुत मुश्किल हो रहा था। पेंटिंग बनाते वक़्त उसका हाथ कापने लगता था।
उसका एक बेटा था। उसने सोचा, उसका यह पेंटिंग का हुनर वे अपने बेटे को सिखाएगा। फिर वे अपने बेटे को पेंटिंग सिखाने लगे।
उसने अपने बेटे से कहा, “बेटे, अब मेरी उम्र हो गयी है। अब से पेंटिंग तू करेगा। और मैं तुझे सिखाऊंगा की पेंटिंग कैसे करते है।’
फिर वे अपने बेटे को पेंटिंग सिखाने लग जाते है। पेंटिंग बनाते कैसे है, उसमे रंग कैसे लगाते है, पेंटिंग को आकर्षित कैसे बनाते है, पेंटिंग को बेचते कैसे है यह सब वे अपने बेटे को सिखाने लगा।
धीरे धीरे बेटा बहुत कुछ सिख गया। उसने पेंटिंग बनाना सिख। बेटे ने बहुत अच्छे से एक पेंटिंग बनाई। वे बाजार गया उसे बेचने और 100 रूपए में बेचकर घर आया। घर आकर उसने अपने पिता से यह बात कही।
उसके पिता ने कहा, “मुझे बहुत ख़ुशी हुई बेटा की तुमने अपनी पहली पेंटिंग बेची। ”
किन उसका बेटा खुश नहीं था।
बेटे ने कहा, “पिताजी आप तो अपना पेंटिंग 500 रूपए में बेचकर घर आते थे लेकिन मेरी पेंटिंग केबल 100 रूपए में बिकी। पिताजी मुझे और सिखाइये। आपको जरूर कुछ ऐसा पता है जो की मुझे नहीं पता। ”
उसके पिताजी ने उसे और सिखाया। कुछ महीनो बाद वे पेंटिंग में और भी बहुत अच्छा हो गया। उसने फिर एक पेंटिंग बनाई। इसबार उसने यह पेंटिंग 200 रूपए में बेची। वे घर आया। लेकिन वे तब भी खुश नहीं था।
वे घर आया और अपने पिताजी से कहा, “पिताजी मैं अभी भी खुश नहीं हूँ, क्युकी मेरी पेंटिंग केबल 200 रूपए में बिकी। लेकिन आपकी पेंटिंग 500 रूपए में बिकती थी। आपको अभी भी कुछ ऐसा पता है जो मुझे नहीं पता। ”
उसके पिता ने उसे फिरसे सिखाया। बेटे ने फिरसे एक पेंटिंग बनाई। इसबार वे बाजार में गया और अपनी पेंटिंग को 300 रूपए में बेचकर घर आया।
वे घर आया और अपने पिताजी से कहा, “पिताजी, मैंने इसबार अपनी पेंटिंग 300 रूपए में बेचीं। ”
पिताजी ने कहा, “बहुत अच्छी बात है। तुम तरक्की करते जा रहे हो बेटा। ”
पर बेटा मायुश था। वे अपने पिताजी से बोला, “पिताजी, अभी भी मेरी पेंटिंग 500 रूपए में क्यों नहीं बिक रही है। ऐसा अभी भी आपको क्या पता है जो मुझे नहीं पता। ”
पिताजी बोले, “बेटे मायुश मत हो। मैं हमेशा तुझे सिखाता रहूँगा की इससे महंगी पेंटिंग कैसे बेचते है। उसके पिताजी ने उसे और सिखाया।
अगले दिन वे बाजार में अपने पेंटिंग को बेचने के लिए गया। पेंटिंग बेचकर जब वे घर आया, तो वे पहली बार बहुत ज़ादा खुश था।
पिताजी ने कहा, “इतने खुश क्यों हो बेटा? ” तो बेटे ने जवाब दिया, “पिताजी, इसबार मैंने अपनी पेंटिंग 700 रूपए में बेची।”
पिताजी बहुत खुश हुए और कहा, “मुझे बहुत ख़ुशी हुई सुनकर की तुम्हारी पेंटिंग 700 रूपए में बिकी। अब बेटा मैं तुम्हे यह सिखाऊंगा की पेंटिंग को 1000 रूपए में कैसे बेचते है। ”
बेटा बोला, “पिताजी, बस करो। मैं आज पेंटिंग 700 रूपए में बेचकर आया। अपने कभी भी अपने पेंटिंग को 500 रूपए से ज़ादा नहीं बेचा है और आप मुझे सिखाएंगे की पेंटिंग को 1000 रूपए में कैसे बेचते है।”
पिताजी ने कहा, “बेटा, अब तुम्हारी पेंटिंग 700 रूपए से ज़ादा नहीं बिक पायेगी क्युकी तेरा सीखना बंध हो गया है। क्युकी जब मैं अपनी पिता से सिख रहा था जो की अपनी पेंटिंग को 300 रूपए में बेचते थे। तब मैंने भी किसी दिन अपनी पेंटिंग को 300 रूपए में बेचीं थी। तब मैंने भी अपने पिता से कहा था की पिताजी आपने अपने पेंटिंग को 300 रूपए मेंबेची और मैंने अपने पेंटिंग को 500 रूपए में बेची तो अब मैं आपसे क्या सिखु? बेटा, उस दिन से मैंने सीखना बंध कर दिया और आज तक मैं भी 500 रूपए से ज़ादा पेंटिंग नहीं बेच पाया। क्युकी मेरे अंदर अहंकार आ गया था और यह अहंकार जान का बहुत बड़ा दुश्मन है। यह अहंकार किसी ज्ञानी ब्यक्ति के लिए कोई जड़ से कम नहीं है जो धीरे धीरे उसे ख़तम कर देते है।
जब हम यह मानने लगते है की हम इससे कैसे सीखते है, मैं तो इससे भी अच्छा कर रहा हूँ तब हम सीखना बंध कर देते है। और जिसका सीखना बंध हो जाता है, उसका आगे बढ़ना बंध हो जाता हैं। हम हर इंसान से थोड़ा थोड़ा करके बहुत कुछ सिख सकते है, क्युकी किसी भी इंसान को सब कुछ नहीं पता होता लेकिन हर इंसान थोड़ा थोड़ा जरूर जानता है।