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एक मेहनती नौजवान की कहानी !!

एक व्यापारी था। उसकी एक बेटी थी। उसकी बेटी बहुत बड़ी हो चुकी थी। उसकी शादी को लेकर ब्यापारी और उसकी पत्नी हमेशा चिंतित रहते थे। शादी में खर्चा भी बहुत होना था। इसलिए ब्यापारी पहले से भी ज्यादा मेहनत करता था। एक दिन, ब्यापारी को सामान खरीदने दूसरे शहर जाना था। सफर पर निकल ने से पहले उसने अपनी बेटी से पूछा की शहर से उसे क्या उपहार चाहिए। बेटी ने उन्हें बताया, “आप मेरे लिए शहर से खूब सारा फल ले आना।”  ब्यापारी दूसरे शहर के लिए निकल पड़ा।  दिन भर काम करके जब रात को ब्यापारी लौट रहा था तो रस्ते में एक भयानक तूफान से घिर गया। रात बहुत हो चुकी थी। बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी। ऊपर से ब्यापारी बहुत थक भी चूका था। तभी उसकी नजर दूर जलती एक रौशनी पर पड़ी। वहां जाकर देखा तो रौशनी एक टूटी फूटी झोपड़ी से आ रही है। आंधी और बारिश पुरे जोर से चल रही थी। ब्यापारी  झपड़ि के अंदर गया।अंदर एक बांस पर लालटेन रखी थी। और उसकी धीमी रौशनी पर मैले कपड़े पहने एक नौजवान खटिया पर बैठा था। झोपड़ी के छद से जगह जगह पानी टपक रहे थे। नौजवान ब्यापारी को देखते ही खड़ा हो गया और उन्हें खटिया पर बैठने को कहा। ब्यापारी ने उसे बताया की वह कौन है? कहाँ से आया है और किस तरह इस तूफान में फस गया है?  उन्होंने उस नौजवान से उस रात झोपड़ी में रहने की अनुमति मानी। नौजवान तुरंत तैयार हो गया। नौजवान ने चूले पर छड़ी हांडी से दाल और चावल निकाल कर जब ब्यापारी को परोसे तो ब्यापारी ने कहा, “अरे नहीं बेटा,  यह तुम खा लो।”

लेकिन नौजवान ने एक न सुनी और ब्यापारी को खाना ही पड़ा। ब्यापारी को भूक भी इतनी लगी थी की सामन्य चावल और दाल भी उसे भोग जैसा लगने लगा। खा कर और हाथ मुँह धो कर वह  जब खटिया पर बैठे तो उनकी नजर चूले की हांडी पर गई। हांडी खाली थी। ब्यापारी ने उससे पूछा, “सारा खाना तो मैंने खा लिया, अब तुम क्या खाओगे?”यह सुनते ही नौजवान मुस्कुराने लगा और झपड़ी के बहार चला गया। कुछ समय बाद, जब वह अंदर आया तो उसके हाथ में दो अमरुद और एक पपीता था। उन फलों को देखते ही ब्यापारी को बेटी का उपहार याद आ गया। नौजवान ने फलों को धोया, काटा और ब्यापारी के साथ मिल बांटकर खाने लगा।फलों का स्वाद व्यापारी को बहुत स्वादिष्ट लगा। व्यापारी हैरान था की इतनी रात को यह नौजवान फल लाया कहाँ से। रात बहुत हो चुकी थी। ब्यापारी खटिया पर और नौजवान जमीन पर सो गया। सुबह हुई तो तूफान थम चूका था। सूर्य भी निकल गया था। अंगराई लेता हुआ ब्यापारी जब झोपड़ी के बहार गया तो उसकी आंखे फटी की फटी रह गई। अपने जीबन में इतना सुन्दर बगीचा उसने पहले कभी नहीं देखा था। रंग बे रंगे फूलों से भरे और तरह तरह के फलों के पेड़, जमीन पर हरी भरी घास देखकर वह तो चौक ही गया। उसे वह बगीचा ऐसा लग रहा था जैसे की स्वर्ग जमीन पर उतर आया था।यह सब देख ब्यापारी आश्चर्य में पड़ गया। बगीचे की प्राकृतिक सुंदरता को देख उसका मुँह खुला का खुला रह गया। तभी सामने से आता नौजवान उसे दिखाई दिया। ब्यापारी ने नौजवान पूछा, “यह बगीचा किसका हैं?”  नौजवान  मुस्कुराते हुए कहा, “यह बगीचा मेरा है।”  इतने सुन्दर बगीचे का मालिक एक झोपड़ी में रहता है, यह बात ब्यापारी को समझ में नहीं आई।उसके और पूछने पर नौजवान ने उसे बताया, “कुछ साल पहले मेरे माता-पिता की मृत्यु हो गई। बस एक यही जमीन का टुकड़ा था मेरे पास। मैंने इसे एकेले ही सींचा और यह सारे फल फूल लगाए। इन फल और फूलों को बेचकर कुछ पैसे कमा लेता हूँ। कभी कभी तो लोग मुफ्त में ही ले जाते है।”

यह सुनकर ब्यापारी को बहुत दुःख हुआ। ब्यापारी ने सोचा, “इतना होनहार नौजवान इतनी गरीबी में अपना जीबन जी रहा है। इतने दैनीय हालत में भी मुझे रात में रहने का अनुमति दिया। खुद का खाना मुझ जैसे एक अनजान को खिला दिया।”उसके संस्कार  देख कर उसका मन भर आया। नौजवान से बिदा लेकर ब्यापारी अपने घर चल पड़ा। घर पहुंचकर बेटी ने जैसे  ही दरवाजा खोला उसकी बेटी  बोल उठी, “मेरे फल कहाँ हैं?”बेटी को देखते ही उसकी सारि थकान उतर गई। मुस्कुराते हुए ब्यापारी ने जवाब दिया, “बेटी मैं तेरे लिए संसार का सबसे बड़ा फल लाया हूँ। मुझे पहले चैन से बैठने दे फिर दूंगा।”पत्नी और बेटी को अपने पास बैठाकर उन्होंने उस नौजवान और उसके सुन्दर बगीचे के बारेमे सब बता दिया। पत्नी और बेटी का मुँह भी यह सुनकर खुला का खुला रह गया। लेकिन सबको अंदर से दुःख भी हो रहा था। ब्यापारी ने दोनों को अपनी मन की बात बताई तो सब तैयार हो गए।अगले दिन व्यापारी उस नौजवान से मिलने गया। नौजवान ने उसका स्वागत किया। दोनों बैठकर बातें करने लगे। ब्यापारी ने उसे समझाया और उसके साथ फूलों फलों का खेती करने का न्योता दिया। नौजवान ने बिना सोचे ब्यापारी के साथ काम करने के लिए हाँ बोल दिया। अपने बगीचे को बेचकर नौजवान कुछ दिनों बाद ब्यापारी के पास पहुंचा।नौजवान को देखकर ब्यापारी बहुत खुश हुआ। उसका बहुत अच्छे से स्वागत किया। उसे अपनी पत्नी और बेटी से मिलबाया। और सबने मिलकर एक साथ खाना खाया। रात ब्यापारी के पास ही बिताई।अगले दिन, ब्यापारी नौजवान को लेकर खेतो की ओर निकल पड़ा। खेत देखकर नौजवान तो चौक सा गया। क्युकी यह खेत उसके बगीचे से बहुत बड़ा था। ब्यापारी ने उसे अपना बगीचा वही बनाने को कहा तो नौजवान का ख़ुशी का ठिकाना न रहा। अगले दिन से ही नौजवान ने अपना काम शुरू कर दिया।

समय बीतता गया और उस नौजवान का मेहनत रंग लाता गया। खेत, जो बंजर सा पड़ा था उसकी मेहनत से  अब चारों ओर  हरा भरा सा हो गया। फूलों की महक तो मिलों दूर महसूस किया जा सकता था। उसके खेत के फल और फूलों को लेने लोग बहुत दूर दूर से आने लगे। बड़े बड़े ब्यापारी भी उसके खेत से खरीदारी करने लगे।नौजवान तो अपने खेतो पर ही धियान देता था। बेचने और खरीदने का सारा काम  तो ब्यापारी ही करता था। नौजवान ने अपनी मेहनत और लगन से कोई कमी नहीं आने दी। देखते देखते ब्यापार आसमान की ऊंचाई छूने लगा। लेकिन नौजवान को रत्ती भर भी गुरुर नहीं आया। वह हमेशा की तरह सबसे मीठा बोलता, सबकी इज्जत करता।एक दिन एक दिन ब्यापारी ने उसे अपने पास बुलाया और प्यार से बोला, “आज से तुम और मैं  इस ब्यापार में बराबर के भागीदार है। यह सुनकर नौजवान ने कहा, “पर जमीन के मालिक तो आप है। मैंने तो सिर्फ फसल उगाया है।”  लेकिन ब्यापारी ने उसकी एक न सुनी और आधी जमीन और आधी ब्यापार उस नौजवान के नाम कर दिया।

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