किसी समय की बात है… तीन बकरे थे, नन्हा बकरा, बीच वाला बकरा और बड़ा बकरा। उन्हें हरी-हरी, नरम-नरम, मीठी घास बेहद पसंद थी। एक दिन तीनों बकरों ने पास की पहाड़ी पर उगी हरी हरी घास खाने का मन बनाया।
उस पहाड़ी पर जाने के लिए उन्हें पास ही बहती नदी पर बने एक लकड़ी के पुल को पार करना था। उस पुल के नीचे एक बौना राक्षस रहता था। वह पुल से गुजरने वालों को पकड़कर अपना भोजन बनाया करता था।
सबसे पहले नन्हा बकरा पुल पार करने लगा। उसे देखते ही बौना राक्षस चिल्लाया, “पुल के ऊपर कौन है?” मिमियाते हुए नन्हे बकरे ने कहा,
“मैं हूँ नन्हा बकरा… घास खाने जा रहा हूँ। मेरे दो भाई पीछे से आ रहे हैं। मोटा हो जाऊँ तब मुझे खा लेना।”
राक्षस ने उसे जाने दिया और दोनों बकरों की प्रतीक्षा करने लगा। उसने बीच वाले बकरे को भी जाने दिया। जब बड़ा बकरा जाने लगा तब बौना राक्षस उसे पकड़ने दौड़ा।
बड़ा बकरा सावधन था। उसके सींग बहुत बड़े, मजबूत और नुकीले थे। अपना सिर झुकाकर अपने सींग वह बौने राक्षस के पेट के पास ले गया और उसे जोर से ध्क्का मारा। बौना राक्षस नीचे बहती हुई नदी में गिरकर बह गया।
Moral of Story
शिक्षा : लालची लोग अपना ही नुकसान करते हैं।