एक वन में भारंड नामक पक्षी रहता था। उसकी आकृति विचित्र थी, उसका शरीर तो एक था, किंतु सिर दो थे। उन दोनों सिरों की आपस में नहीं बनती थी। समय-समय पर उनमें टकराव होता रहता था।
एक दिन वन में भटकते हुए पक्षी के दांये मुख को एक रसीला फल प्राप्त हुआ। उसने लपककर फ़ल को पकड़ लिया और बड़े ही चाव से खाने लगा।
यह देख बाएं मुख की भी लार टपकने लगी। उसने दांये मुख से कहा, “तनिक मैं भी तो यह फ़ल चखकर देखूं”।
किंतु दांये मुख ने उसे झिड़क दिया, “इसकी क्या आवश्यकता है? मैं खाऊँ या तुम, जायेगा तो हमारे ही पेट में और पेट तो हमारा एक ही है, वह तो भर ही जायेगा”।
यह उत्तर सुन बायें मुख को क्रोध आ गया। वह दांये मुख से अपने अपमान और तिरस्कार का बदला लेने का अवसर खोजने लगा।
यह अवसर उसे प्राप्त हो गया, जब नदी किनारे पड़ा हुआ एक सुनहरा फ़ल उसे प्राप्त हुआ। वह यह फल दांये मुख को जलाते हुए अकेले ही खाना चाहता था। किंतु जैसे ही वह उसे खाने को हुआ, पास ही एक वृक्ष पर बैठा कौवा (Crow) बोल पड़ा, “बंधु उस फल को मत खाना, वह विषाक्त है, उसे खाते ही तुम मर जाओगे”।
यह बात सुन दांयें मुख ने बायें मुख को चेताया और रोकने का प्रयास किया। किंतु बायां मुख प्रतिशोध की ज्वाला में जल रहा था। उसने दांये मुख की एक ना सुनी और वह फल खा लिया। फल खाते ही पक्षी के प्राण पखेरू उड़ गए।
सीख – जो आपस में मिल-जुलकर काम नहीं करते, वे नष्ट हो जाते हैं ||