एक बार एक भेड़िया भोजन की खोज में जंगल में भटक रहा था। दुर्भाग्यवश उसे जंगल में खाने के लिए कुछ भी नहीं मिला। भोजन की खोज में चलते-चलते वह जंगल के किनारे पहुँच गया, जहाँ एक गाँव बसा हुआ था।
जंगल के समीप ही गाँव वालों के खेत थे। भेड़िया कुछ देर इधर-उधर भटकता रहा। तभी भेड़िये ने देखा कि एक खेत में एक घोड़ा घास चर रहा है।
उस घोड़े की टाँग में चोट लगी थी जिससे वह लंगड़ाकर चल रहा था। भेड़िये से भूख सहन नहीं हो रही थी। इसलिए जब उसने घायल घोड़े को देखा तो उसके मन में यह विचार आया कि क्यों न घोड़े की टाँग पर से थोड़ा-सा मांस खींच लिया जाए।
लंगड़ा घोड़ा पीछा भी नहीं कर पाएगा और मुझे खाना भी मिल जाएगा। घोड़े का मांस खाने के लिए भेड़िये ने मन ही मन एक योजना बनाई।
घोड़े के निकट जाकर भेड़िया बोला, “नमस्कार, घोड़े भाई! आप कैसे हैं? आपको देखकर मुझे बड़ी खुशी हुई।” घोड़ा बोला, “मैं अच्छा हूँ! आप कैसे हैं? कहिए आज इधर कैसे आना हुआ? वैसे तो आप कभी इधर आते नहीं हैं।” “बस, यूं ही घूमते-घूमते पहुँच गया। लगता है, आपकी टाँग में कोई गहरी चोट लगी है।
मैंने देखा कि आप लँगड़ा कर चल रहे हैं।”भेड़िये ने बहुत ही धूर्तता से पूछा। घोड़े ने कहा, “मेरे पैर में एक कील चुभने से घाव हो गया है।
इसके कारण मैं ठीक से चल-फिर नहीं सकता। बड़ी कठिनाई से चलता हूँ। मेरी चाल भी बिगड़ गई है। अब मैं लँगड़ाये बिना नहीं चल पाता।
कभी-कभी तो पैर में असहनीय दर्द भी होता है। कभी-कभी घाव ऐसा होता है, जो लंबे समय तक दर्द देता है।” भेड़िये ने झूठी सहानुभूति जताते हुए पूछा, “अरे! यह तो बहुत बुरा हुआ।
एक छोटी-सी कील ने आपको कितना कष्ट दे दिया। क्या मैं करीब से आपका घाव देख सकता हूँ कि यह कितना गहरा है और क्या इसका कोई उपचार हो सकता है या नहीं?” घोड़ा समझदार था।
उसे तुरन्त समझ आ गया कि भेड़िये के मन में क्या है। घोड़े ने भेड़िये को सबक सिखाने की ठान ली और भेड़िये को अपनी टाँग देखने की आज्ञा दे दी।
भेडिया बहुत प्रसन्न हुआ। उसे लगा कि उसकी चाल कामयाब हो गई है। बिना एक पल भी गंवाए वह तुरंत घोड़े के पीछे जा खड़ा हुआ और घोड़े की टाँग से मांस खींचने के लिए तैयार हो गया। घोड़ा भी बहुत सावधान था।
जैसे ही भेड़िये ने अपना मुँह खोला, घोड़े ने उसे इतनी जोर से दुलत्ती मारी कि भेडिया दूर जा गिरा। उसके मुँह से खून बहने लगा।
भेड़िये ने भाग जाने में ही अपनी भलाई समझी और वह उसी समय वहाँ से सिर पर पैर रख कर भाग लिया।
शिक्षा:- अधिक चतुरता मूर्खता की निशानी है।