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नामस्‍मरण का महत्त्व : भक्त प्रल्‍हाद

आज हम देवता के नामजप का महत्त्व और उसमें कितनी शक्‍ति होती है, यह, कथा के माध्‍यम से जानने का प्रयास करेंगे ।

जो देवता का नामजप करता है, वह देवता का भक्‍त हो जाता है । देवता अपनी भक्‍तों की सदा रक्षा करते हैं । भगवान ने भक्‍तों को वचन दिया है, ‘न मे भक्‍त: प्रणश्‍यती ।’ अर्थात ‘मेरे भक्‍तों का कभी नाश नहीं होता ।

आज हम देवता का अखंड नामजप करनेवाले एक ऐसे भक्‍त की कथा सुननेवाले हैं, जिसकी असीम भक्‍ति के कारण देवता उसकी रक्षा के लिए प्रकट हुए थे ।

आप सब भक्‍त प्रल्‍हाद के विषय में जानते ही होंगे । भक्त प्रल्‍हाद के पिता हिरण्‍यकश्‍यपू थे । वे देवताओं का अनादर करते थे और अहंकारवश स्‍वयं को देवताओं से श्रेष्‍ठ समजते थे ।

परंतु, भक्‍त प्रल्‍हाद सदैव ‘नारायण, नारायण’ यह जप करते थे । इसलिए, हिरण्‍यकश्‍यपू प्रल्‍हाद पर बहुत क्रोध करते थे । उसको क्रोध से कहते थे, ‘तुम देवता का नाम नहीं जपना । मैं देवताओं से श्रेष्‍ठ हूं, मेरा ही नाम जपना । यदि तुमने ऐसा नहीं किया, तो मैं तुम्‍हें जीवित नहीं छोडूंगा ।’ तब भक्त प्रल्‍हाद कहता, ‘नारायण मेरे सर्वस्‍व हैं, मैं उनका नाम जपना नहीं छोडूंगा और पुन: वे ‘नारायण, नारायण’ जाप करना आरंभ करता । भक्‍त प्रल्‍हाद नामस्‍मरण करना बंद नहीं कर रहा, इसे देखकर हिरण्‍यकशिपू का क्रोध बढता ही चला गया । उन्‍होंने अब प्रल्‍हाद को मार डालना सुनिश्‍चित किया । उसके लिए उन्‍होंने भक्‍त प्रल्‍हाद को उबलते तेल की कढाई में फेंका, आग में फेंका और गहरी खाई में भी फेंका; परंतु भक्‍त प्रल्‍हाद को कुछ भी नहीं हुआ । अपने पिता द्वारा इतने अत्‍याचार किए जाते समय भी वह अखंडरूप से ‘नारायण, नारायण’ जाप कर रहा था । ईश्‍वर का निरंतर नामस्‍मरण करने से ईश्‍वर ने ही अनेक कठिन प्रसंगों में उसकी रक्षा की । भक्‍त प्रल्‍हाद का किसी भी उपाय से नाश न होता हुआ देखकर एक दिन हिरण्‍यकशिपू ने उससे पूछा, ‘‘तू जिस ईश्‍वर का नाम लेता है, वह ईश्‍वर है कहां ? क्‍या वह इस खंबे में है ?’, ऐसा पूछकर उन्‍होंने क्रोध से उस खंबे को लात मार दी । तब वह खंबा टूटकर उसके २ टुकडे हुए और उससे नारायण अर्थात श्री विष्‍णुजी नृसिंहजी के रूप में प्रकट हुए । श्री नृसिंहजी ने अपने भक्‍त के साथ अन्‍याय करनेवाले हिरण्‍यकश्‍यपू का वध कर अपने भक्‍त की रक्षा की ।

इस कथा से हमने क्‍या सिखा ? यदि हम ईश्‍वर के भक्‍त बन गए, तो वे प्रत्‍येक संकट में हमारी रक्षा करते हैं । तो हमें ईश्‍वर का भक्‍त होने के लिए क्‍या करना होगा ?, तो ईश्‍वर का नामजप करना होगा । तो मित्रो, क्‍या हम सभी आज से ही नामस्‍मरण करेंगे ना ?

अब हम सभी के मन में यह प्रश्‍न उठा ना कि मैं कौनसा नामजप करूं ? सभी को ऐसा लगा ना कि मैं कौनसे देवी देवता का नाम लूं ?

हमें अपनी कुलदेवता का नामजप करना चाहिए । छत्रपति शिवाजी महाराज भी निरंतर ‘जगदंब, जगदंब’, ऐसा उनकी कुलदेवता का नामस्‍मरण करते थे । इसके साथ ही हम सभी छात्र हैं; इसलिए हम विद्या के देवता श्री गणेशजी का ‘श्री गणेशाय नम: ।’ नामजप भी करेंगे ।

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