आज अचला जी को अपने बच्चों का बचपन याद आ रहा था और उनकी आंखों में ढेरों आंसू थे। पति की कमाई सीमित होने के कारण वह स्वयं पूरा दिन सिलाई करके बच्चों की जरूरतों को पूरा करती थी। सिलाई मशीन चलाते चलाते उनकी कमर भी दुखने लगती थी। एक बेटी प्रिया और दो बेटे सोनू मोनू सबको एक जैसी सुविधाएं देती थी। नए कपड़े आते थे तो तीनों के लिए। अगर एक बच्चा कहता कि आज ठंडा दूध पीने का मन कर रहा है तो तीनों बच्चों को ठंडा दूध शरबत मिलाकर दे देती थी फिर चाहे अपनी चाय के लिए दूध बचे या ना बचे। तीनों की पढ़ाई का खर्चा, स्कूल दूर होने के कारण रिक्शा का खर्चा और भी अन्य खर्चे वह अपनी सिलाई के द्वारा निकाल लेती थी। तीनों बच्चों को वह एक आंख से देखती थी और आज वही बच्चे बड़े होकर उनसे कैसा बर्ताव कर रहे हैं यही सोचकर उनकी आंखों में आंसू आ गए थे। उनके पति रिटायर हो चुके थे। बच्चों ने उन्हें और अपने पिता को सबसे छोटा और गरम कमरा रहने के लिए दे दिया था और खुद अपने कमरों में ऐसी लगाकर चैन की बंसी बजाते थे। उन्हें पता था कि उनके पिता को गर्मी बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होती है और अचला जी जिन्होंने बच्चों की जरूरतें पूरी करने के लिए सिलाई करते करते अपनी कमर तोड़ ली थी उन्हें सोने के लिए एक बिस्तर भी नसीब नहीं था। अब उन्होंने अपने मन को कठोर करके निर्णय ले लिया था कि अब हम बच्चों की कारस्तानी और बर्दाश्त नहीं करेंगे और उन्हें साफ साफ कह देंगे कि यह घर हमारा है, तुम लोग अपना इंतजाम अपने हिसाब से कर लो। यह सब सोचते सोचते उन्होंने अपने आंखों के आंसू पोंछ डाले और मजबूती से उठ खड़ी हुई।
स्वरचित अप्रकाशित
गीता वाधवानी दिल्ली