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परफॉरमेंस देखनी हो तो ‘शक्ति’ ज़रूर देखें

अमिताभ बच्चन ने कभी एक इंटरव्यू में कहा था कि दिलीप साब की ‘गंगा जमुना’ उन्होंने कम से कम पच्चीस मर्तबे देखी थी. मतलब, वो बहुत बड़े फैन थे दिलीप साब के. इसीलिए एक सुबह जब उन्होंने खुद को ‘शक्ति’ में पाया तो लगा मानों खुदा मिल गया है. इसमें वो दिलीप साब के बेटे थे. दोस्तों और शुभचिंतकों ने अमिताभ को चेताया कि सोच लो कि गलती तो नहीं करने जा रहे हो. बाप बाप होता है. दिलीप, खा जाएंगे. लेकिन अमिताभ ने परवाह नहीं की. किसी भी कीमत पर वो अपने आदर्श के साथ काम करेंगे.
ख़बर थी की कि मूलतः अमिताभ पहली पसंद नहीं थे. राज बब्बर के नाम पर भी विचार किया गया था. लेकिन बात बनी नहीं. बाप के किरदार में एक्टर बहुत पावरफुल है तो बेटा भी कम से कम उन्नीस होना ही चाहिए. तब अमिताभ को साधा गया. वो फ़ौरन तैयार हो गए. इधर दिलीप साब को कोई ऐतराज नहीं हुआ. वो चैलेंज क़बूल किया करते थे. उन दिनों अमिताभ भी बड़े कद के अभिनेता थे. दिलीप खुद को तौलना चाहते थे फ़िल्मी दुनिया का असल बाप है कौन ?
इधर सलीम-जावेद अगर किसी स्टार, एक्टर और इंसान को सबसे ज्यादा भाव देते थे तो वो दिलीप कुमार ही थे. लेकिन उन्हें कभी मौका नहीं मिला था. दिलीप कुमार उनके लिए क्या थे, इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि ‘दीवार’ लिखते समय उनके ज़हन में ‘गंगा जमुना’ का दिलीप कुमार ही थे. वैसे भी सलीम-जावेद की फिल्मों को ग़ौर से देखें तो ज़्यादातर मूल किरदार में आपको दिलीप नज़र आएंगे. ये भी कहा जाता है कि अगर दिलीप कुमार न होते तो शायद सलीम-जावेद का वज़ूद ही न होता. यह जानना भी बहुत दिलचस्प होगा कि ‘शक्ति’ तमिल फ़िल्म ‘थंगा पठकम्म’ का रीमेक थी जिसके हीरो साउथ के सम्राट शिवाजी गणेशन थे. लेकिन जैसे जैसे स्क्रिप्ट पर काम चलता गया, वो ओरिजिनल से बिलकुल अलग हो गयी. हां, उसका अंत वही रहा.
यहां यह भी ग़ौरतलब है कि दिलीप कुमार ने भी खुद को बिलकुल बदल दिया. उन्हें अहसास हो गया था कि फ़िल्म में सभी महारथी हैं. लेखक, डायरेक्टर रमेश सिप्पी और कोस्टार अमिताभ बच्चन भी. उन्होंने कोई दख़ल नहीं दिया. अपने काम से काम रखा. उन्हें मालूम था कि यह बाप- बेटे की फ़िल्म है. दोनों का बार बार क्लैश होना है. अमिताभ ने फिल्म में एक जगह कहा भी मेरे बाप ने दो शादियां की हैं. एक मेरी मां से और दूसरी पुलिस की वर्दी से. उन्हें बेटे से ज्यादा फ़र्ज़ प्यारा था. फ़र्ज़ की ख़ातिर उन्होंने माफ़िया बेटे को गोली मार दी. आख़िर में बेटे ने बाप की गोद में दम तोड़ा. बेटे और बाप दोनों को बहुत अफ़सोस हुआ. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. महबूब की ‘मदर इंडिया’ और दिलीप कुमार की ‘गंगा जमुना’ का क्लाइमेक्स तो सबको याद होगा ही. ‘शक्ति’ का क्लाइमेक्स बहुत क़रीब था इन फ़िल्मों के कौन उन्नीस था और कौन बीस? इसका अंदाज़ा लगाना आसान नहीं था. लेकिन बेस्ट एक्टर का फिल्म फेयर अवार्ड दिलीप कुमार को ही मिला. ज्यादातर क्रिटिक्स ने लिखा कि अगर जोरदार परफॉरमेंस के लिए कोई फिल्म देखनी हो तो दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन की ‘शक्ति’ ज़रूर देखें. एक्टिंग के स्टूडेंट्स को भी उनके उस्ताद सलाह देते थे कि ‘शक्ति’ देख लो, समझ आ जाएगा एक्टिंग क्या होती है. अमिताभ बच्चन भी ‘शक्ति’ को अपने कैरियर की श्रेष्ठ फिल्मों में से एक मानते हैं.

आज दिलीप कुमार की पुण्य तिथि है। महान अदाकार दिलीप साहब को उनकी पुण्य तिथि पर उनका विनम्र स्मरण।

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