एक बार पाँच मूर्ख मित्र एक गाँव जा रहे थे। रास्ते में पड़ने वाली नदी को उन सभी ने तैरकर पार किया। जब वे नदी के दूसरे किनारे पहुंचे तो उनमें से एक मित्र बोला, “दोस्तो, हमें गिनकर देख लेना चाहिए कि हम सभी पूरे तो हैं।
कहीं ऐसा न हो कि हम में से कोई नदी में डूब गया हो।” सभी दोस्त उसकी बात से सहमत थे। इसलिए उनमें से चार पंक्तिबद्ध होकर खड़े हो गए और पाँचवे दोस्त ने गिनती शुरू की, “एक, दो, तीन, चार। अरे! हमारा पाचवाँ मित्र कहाँ है?
वह गायब है।” एक अन्य मित्र ने भी उसी तरह गिनती की और एक मित्र को कम पाया। वह चिल्लाकर बोला, “हमारा पाँचवा मित्र नदी में डूब गया!” बस, फिर क्या था, वे सभी जोर-जोर से रोने लगे। एक राहगीर वहाँ से गुजर रहा था।
जब उसने उनसे उनके दुख का कारण पूछा तो उन्होंने उसे कारण बता दिया। तब राहगीर ने उन सबको एक पंक्ति में खड़ा कर पाँचों को गिना और बोला, “देखो, तुम पूरे पाँच हो।” ये सुनकर वे सभी बड़े खुश हुए।
राहगीर, “तुम सभी गिनती करते हुए अपने को छोड़कर बाकी चारों को गिन रहे थे। इसलिए एक कम हो रहा था।” राहगीर की बात सुनकर उन्हें अपनी मूर्खता का एहसास हुआ।