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बुद्धिमान सरपंच!!

एक गांव में एक वृद्ध सरपंच रहते थे। बड़े बड़े झगड़ों को वे चुटकियों में सुलझा देते थे। जिसके कारण दूर दूर से लोग उनसे फैसला करवाने आते थे। सरपंचजी अपनी बुद्धिमत्ता के लिए काफी प्रसिद्ध हो चुके थे।

एक बार दूर के गांव के कुछ लोग किसी झगड़े के विषय में उनसे सलाह लेने आये। ये लोग न तो सरपंच जी को जानते थे, न ही उनके मकान को जानते थे। गांव के पास पहुंचकर उन्होंने पास के खेत में काम कर रहे चार नवयुवकों से सरपंच जी का पता पूछा।

उनमें से एक नवयुवक बोला, ” सरपंचजी का घर तो इसी गांव में है। लेकिन वे अब कुछ बोलते और समझते नहीं। उनके पास जाने से कोई फायदा नहीं।”

उन लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्हें तो बताया गया था कि सरपंचजी पूरी तरह स्वस्थ और सकुशल हैं। उन्होंने विचार किया कि अब यहां तक आ गए हैं तो मिलकर ही जायेंगे। वे आगे बढ़ गए।

गांव में प्रवेश करने पर एक कुएं पर चार औरतें पानी भर रही थीं। उन्होंने उन औरतों से सरपंचजी का पता पूछा तो उनमें से एक बोली, “घर तो सामने ही है पर उनको कुछ दिखता नहीं है।”

वे लोग असमंजस में पड़ गए। दो जगह उन्होंने पता पूछा और दोनों जगह अलग अलग उत्तर मिला। वे घर के सामने पहुंचे तो एक बुढ़िया बैठी दिखाई दी। उन्होंने उससे सरपंच जी के बारे में पूछा।

बुढ़िया तपाक से बोली, “वे तो मर गए। अब उनके पास जाना बेकार है।” वे लोग किंकर्तव्यविमूढ़ से खड़े थे। तभी उन्हें सामने से सरपंचजी आते दिखे। सरपंचजी ने सबको ससम्मान बैठाया और उनके आने का कारण पूछा।

उनमें से एक व्यक्ति ने कहा, “सरपंचजी ! अपनी बात तो हम बाद में बताएंगे । पहले आप ये बताइए कि हमें आपके गांव में आपके विषय में अलग अलग बातें सुनने को मिलीं। जबकि आप पूरी तरह स्वस्थ और सकुशल हैं। इसका कारण बताइए।”

सरपंचजी मुस्कुराते हुए बोले, “देखो भाई, मेरा परिवार बाद है। जिसमें सबको संतुष्ट कर पाना संभव नहीं है। सबकी अलग अलग मांगें हैं। सबका स्वभाव अलग अलग है। वे मेरा परामर्श और अनुशासन भी नहीं मानते हैं।”

ऐसे में उनका रुष्ट होना स्वाभाविक है। खेत में मिले चारों लड़के मेरे बेटे हैं। वे काम से जी चुराते हैं। लड़ाई झगड़े करते रहते हैं। कुएं पर मिली औरतें मेरी बहुएं हैं। जोकि गहने, कपड़ों के लिए कलह करती रहती हैं।”

“दरवाजे पर मिली बुढ़िया मेरी पत्नी है। जोकि तीर्थयात्रा पर जाने की रट लगाए रहती है। मैं इन सबकी बातों पर ध्यान नहीं देता। उनकी बातों को अनसुना करता रहता हूँ। इस तरह से मैं कलह को टालता रहता हूँ।”

भले ही वे मुझसे असंतुष्ट रहते हों। किन्तु मेरे घर में शांति बनी रहती है।” सरपंचजी की बात सुनकर उन लोगों की आंख खुल गयी। उन्हें ज्ञान हुआ कि समस्या सबके साथ होती है। क्रोध, आवेश से उसे हल नहीं किया जा सकता। बल्कि सहनशीलता और बुद्धिमानी से उससे बचा जा सकता है।

सीख- Moral

यह short story हमे सिखाती है कि धैर्य और सहनशीलता के द्वारा कलह या झगड़ों को टाला जा सकता है।

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