एक मधुमक्खी थी। वह दिनभर बड़े परिश्रम पूर्वक एक फूल से दूसरे फूल पर जाती और उनका रस चूसती। फिर वह अपने छत्ते पर जाकर उस रस से शहद बनाती। एक दिन उसने सोचा,
‘मैं दिनभर मेहनत करती हूँ और फूलों के रस से शहद बनाने के बाद हर समय डर लगा रहता है कि कहीं कोई मेरा शहद न चुरा ले।’ एक दिन मधुमक्खी गुरु बृहस्पति के पास जा पहुँची।
उन्हें थोड़ा-सा शहद भेंट करके वह बोली, “गुरुवर! कोई भी आकर कड़ी मेहनत से तैयार किया गया मेरा शहद चुराकर ले जाता है। इसलिए कृपा करके आप मुझे एक डंक दे दें, ताकि मैं शहद चुराने वालों को डंक मार सकूँ।”
यह सुनकर गुरु बृहस्पति को बुरा लगा, लेकिन उन्हें मधुमक्खी को वर देना ही पड़ा।वैसे उन्होंने एक शर्त रख दी, “तुम किसी भी व्यक्ति को डंक मारकर जान से नहीं मारोगी, वरना डंक तुम्हें ही मार देगा।”
शिक्षा: दूसरों का बुरा करना पाप है।