
शंकर की आधी प्रतिमा पुरुष की है और आधी स्त्री की – अर्धनारीश्वर – यह तो अनूठी घटना है। लेकिन जो जीवन के परम रहस्य में जाना चाहते है, उन्हें शिव के इस रूप को समझना पड़ेगा।
अर्धनारीश्वर का अर्थ यह हुआ कि आपका ही आधा व्यक्तित्व आपकी पत्नी और आपका ही आधा व्यक्तित्व आपका पति हो जाता है। आपकी ही आधी ऊर्जा स्त्रैण और आधी पुरुष हो जाती है। और तब इन दोनों के बीच जो रस और लीनता पैदा होती है, उस शक्ति का कहीं कोई विसर्जन नहीं होता। अगर आप बायोलाजिस्ट से पूछें आज, तो वे राजी हैं। वे कहते हैं , हर व्यक्ति दोनों है – बाई सेक्सुअल है। वह आधा पुरुष है , आधा स्त्री है। होना भी चाहिए , क्योंकि आप पैदा एक स्त्री और एक पुरुष के मिलन से हुए हैं। तो आधे – आधे आप होना ही चाहिए।
अगर आप सिर्फ मां से पैदा हुए होते, तो स्त्री होते ; सिर्फ पिता से पैदा हुए होते, तो पुरुष होते। लेकिन आप में पचास प्रतिशत आपके पिता और पचास प्रतिशत आपकी मां मौजूद है। तो आप आधे – आधे होंगे ही – अर्धनारीश्वर होंगे। जीव विज्ञान ने तो अब खोजा है इधर पचास वर्षों में, लेकिन हमने अर्धनारीश्वर की प्रतिमा में, आज से कम से कम पचास हजार साल पहले, इस धारणा को स्थापित कर दिया। और यह धारणा हमने खोजी योगी के अनुभव के आधार पर। जब योगी भीतर लीन होता है , तब पाता है कि मैं दोनों हूं – प्रकृति भी और पुरुष भी ; मुझमें दोनों मिल रहे हैं ; मेरा पुरुष मेरी प्रकृति में लीन हो रहा है ; मेरी प्रकृति मेरे पुरुष से मिल रही है ; उनका आलिंगन अबाध चल रहा है।
मनोवैज्ञानिक भी कहते हैं कि आप आधे पुरुष हैं और आधे स्त्री। आपका चेतन पुरुष है, आपका अचेतन स्त्री है। अगर आपका चेतन स्त्री का है , तो आपका अचेतन पुरुष है। जगत द्वंद्व से निर्मित है , इसलिए आप दो होंगे ही। आप बाहर खोज रहे हैं स्त्री को , क्योंकि आपको भीतर की स्त्री का पता नहीं। आप बाहर खोज रहे हैं पुरुष को, क्योंकि आपको भीतर के पुरुष का पता नहीं। और इसीलिए , कोई भी पुरुष मिल जाए , तृप्ति न होगी, कोई भी स्त्री मिल जाए , तृप्ति न होगी। क्योंकि भीतर जैसी सुंदर स्त्री बाहर पाई नहीं जा सकती। और आपके पास , सबके पास , एक ब्लू प्रिंट है। वह आप जन्म से लेकर घूम रहे हैं। इसलिए आपको कितनी ही सुंदर स्त्री मिल जाए, कितना ही सुंदर पुरुष मिल जाए , थोड़े दिन में बेचैनी शुरू हो जाती है। लगता है कि बात बन नहीं रही। इसलिए सभी प्रेमी असफल होते हैं।
वह जो प्रतिमा आप भीतर लिए हैं , वैसी प्रतिमा जैसी स्त्री आपको अगर कभी मिले , तो शायद तृप्ति हो सकती है। लेकिन वैसी स्त्री आपको कहीं मिलेगी नहीं। उसके मिलने का कोई उपाय नहीं है। क्योंकि जो भी स्त्री आपको मिलेगी, वह किन्हीं पिता और मां से पैदा हुई और उन पिता और मां की प्रतिछवि उसमें घूम रही है। आप अपनी प्रतिछवि लिए हुए हैं हृदय के भीतर। जब आपको अचानक किसी को देखकर प्रेम हो जाता है , तो उसका कुल मतलब इतना होता है कि आपके भीतर जो प्रतिछवि है, उसकी छाया किसी में दिखाई पड़ गई, बस। इसलिए पहली नजर में भी प्रेम हो सकता है , अगर किसी में आपको वह बात दिखाई पड़ गई, जो आपकी चाह है – चाह का मतलब, जो आपके भीतर छिपी स्त्री या पुरुष है – किसी में वह रूप दिखाई पड़ गया, जो आप भीतर लिए घूम रहे हैं , जिसकी तलाश है। प्रेम अपने उस जुड़वां हिस्से की तलाश है, जो खो गया; जब मिल जाएगा, तो तृप्ति होगी।
OSHO