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श्री कृष्णजी ने बनाया अपनी बंसूरी से श्रीराधा के लिए कुंड : आइए जाने





एक बार कंस ने भगवान श्रीकृष्‍ण का वध करने के लिए अरिष्टासुर नाम के दैत्‍य को भेजा । अरिष्टासुर गाय के बछडे का रूप लेकर श्रीकृष्‍ण की गायों में शामिल हो गया और उन्‍हें मारने लगा । भगवान श्रीकृष्‍ण ने बछडे के रूप में छिपे दैत्‍य को पहचान लिया । श्रीकृष्‍ण ने उसको पकडा और भूमी पर पटक पटककर उसका वध कर दिया । यह देखकर राधा ने श्रीकृष्‍ण से कहा, ‘‘असुर तो गौ का रूप धारण कर के आया था, परन्‍तु गौ के रूप में असुर का वध करने से आपको गौ-हत्‍या का पाप लग गया है । इस पाप से मुक्‍ति हेतु आपको सभी तीर्थों के दर्शन करने चाहिए ।’’

राधा की बात सुनकर श्रीकृष्‍ण ने देवर्षि नारद से इसका उपाय पूछा । देवर्षि नारद ने उन्‍हें बताया, ‘‘भगवान, आप सभी तीर्थों का आवाहन करें और उन्‍हें जल रूप में यहां बुलाएं । उन तीर्थों के जल को एकसाथ मिलाकर उससे स्नान करने से आपको गौ हत्‍या के पाप से मुक्‍ति मिल जाएगी ।’’ देवर्षि नारद के कहने पर श्रीकृष्‍ण ने अपनी बांसुरी से एक छोटा सा कुंड खोदा और सभी तीर्थों के जल को उस कुंड में आने की प्रार्थना की । भगवान श्रीकृष्‍ण की प्रार्थना सुनकर सभी तीर्थ वहां जल रूप में आ गए ।

भगवान श्रीकृष्‍णकुंड में एकत्रित उस जल से स्नान करके पापमुक्‍त हो गए । उस कुंड को ‘कृष्‍ण-कुंड’ कहा जाता है, जिसमें स्नान करके श्रीकृष्‍ण गौहत्‍या के पाप से मुक्‍त हुए थे । सभी तीर्थों का अंश जल रूप में कृष्‍णकुंड में है । यह कुंड मथुरा में है ।

श्रीकृष्‍ण द्वारा बने कुंड को देख राधा ने भी उस कुंड के पास अपने कंगन से एक और छोटा सा कुंड खोदा । भगवान श्रीकृष्‍ण ने जब उस कुंड को देखा तो उन्‍होंने कहां, ‘‘राधा तुमने बनाया यह कुंड मेरे बनाएं कुंड से भी अधिक प्रसिद्ध होगा ।’’ देवी राधा द्वारा बनाया गया कुंड ‘राधा-कुंड’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । कार्तिक अष्टमी तिथि पर इन कुंडों का निर्माण हुआ था, जिसके कारण कार्तिक अष्टमी को यहां स्नान करने का विशेष महत्‍व है ।

कार्तिक अष्टमी का पर्व प्राचीन काल से मनाया जाता है । इसी से जुडे राधा कुंड से संबंधित प्रचलित कथा

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