गुरु नानकदेवजी अपने उपदेश में कहा करते थे,
कूड़ राजा, कूड़ परजा, कूड़ सभ संसार। कूड़ मंडप, कूड़ माड़ी, कूड़ बैसणहार॥
अर्थात् संसार के सब रिश्ते और पदार्थ झूठे हैं। राजा, प्रजा, महल, धन और ऐश्वर्य के अन्य साधनों में कोई सार-तत्त्व नहीं है। संसार में केवल परमात्मा सच्चा है। इसके बावजूद मनुष्य झूठ से नेह कर रहा है और परमात्मा के नाम को विस्मृत किए बैठा है।
भर्तृहरि ने भी कहा है, ‘मानव जीवन सांसारिक भोगों में बिता देना और सत्कर्मों एवं भगवद्भक्ति से विमुख रहना आत्मघाती कदम है। कुसंग में पड़कर मनुष्य अपना पूरा जीवन भोग-विलास,
राग-द्वेष और झूठी तृष्णाओं-इच्छाओं की पूर्ति में बिता डालता है। ऐसा मनुष्य प्रत्येक क्षण दुःख, शोक, विषाद, अशांति और अवनति की भट्टी में झुलसता रहता है।
शास्त्रों में कहा गया है, मन एव मनुष्यायां कारणं बंधमोक्षयोः। यानी मन में जैसा संकल्प होता है, वैसा ही परिणाम भी मिलता है। अतः यदि आप शुद्ध परिणाम चाहते हैं, तो आपको नित्य शुद्ध संकल्प करना चाहिए।
अपना प्रत्येक क्षण प्रेम, सेवा, परोपकार, कर्तव्य पालन, भगवद्भक्ति, सत्साहित्य के पठन-पाठन में लगाने वाला कभी निराश, दुःखी और अशांत नहीं होता।
वह भय, कलह, शोक, विषाद अवरोध से मुक्त रहकर सहज ही में अपना मानव जीवन सफल बना लेता है। छोटे-मोटे सांसारिक कष्टों की उसे अनुभूति नहीं होती। उसे लगने लगता है कि वह सत्य व सत्संकल्प पर अटल है। अतः परमात्मा स्वतः उसकी सांसारिक नौका पार लगाने को तत्पर हैं।