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संन्यासी का स्वदेश प्रेम !!

विरक्त संत स्वामी कृष्णबोधाश्रमजी ने बचपन में ही अपनी विशेष पोशाक पहनने और संस्कृत व हिंदी भाषा पर गर्व करने का संकल्प लिया था। साधु बनने के बाद स्वामीजी धर्म प्रचार के लिए जहाँ भी जाते, तो वहाँ श्रद्धालुओं को स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करते थे।

एक बार मथुरा जिले के किसी नगर में उन्होंने प्रवचन करते हुए कहा, ‘ब्रजभूमि भगवान् श्रीकृष्ण की लीला भूमि है। यहाँ के लोगों को अपने बच्चों को विदेशी भाषा न पढ़ाकर देववाणी संस्कृत और हिंदी पढ़ानी चाहिए ।

विदेशी वस्त्रों की जगह खादी के वस्त्र पहनने चाहिए । ‘ उनके इस प्रवचन से प्रशासन के कान खड़े हो गए । गुप्तचर विभाग ने रिपोर्ट दी कि कृष्णबोधाश्रमजी लोगों को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भड़का रहे हैं ।

स्वामीजी धर्मप्रचार करते हुए मेरठ पहुँचे। मथुरा प्रशासन मेरठ प्रशासन से उन पर निगाह रखने का अनुरोध पहले ही कर चुका था ।

एक दिन एक सरकारी अधिकारी स्वामीजी के प्रवचन में पहुँचा। वह चुपचाप प्रवचन सुनता रहा। बाद में उनके चरण स्पर्श करते हुए बोला, ‘महाराज, आपके प्रवचन से मैं बहुत प्रभावित हूँ।

विरक्त संत स्वामी कृष्णबोधाश्रमजी ने बचपन में ही अपनी विशेष पोशाक पहनने और संस्कृत व हिंदी भाषा पर गर्व करने का संकल्प लिया था। साधु बनने के बाद स्वामीजी धर्म प्रचार के लिए जहाँ भी जाते, तो वहाँ श्रद्धालुओं को स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करते थे।

एक बार मथुरा जिले के किसी नगर में उन्होंने प्रवचन करते हुए कहा, ‘ब्रजभूमि भगवान् श्रीकृष्ण की लीला भूमि है। यहाँ के लोगों को अपने बच्चों को विदेशी भाषा न पढ़ाकर देववाणी संस्कृत और हिंदी पढ़ानी चाहिए ।

विदेशी वस्त्रों की जगह खादी के वस्त्र पहनने चाहिए । ‘ उनके इस प्रवचन से प्रशासन के कान खड़े हो गए । गुप्तचर विभाग ने रिपोर्ट दी कि कृष्णबोधाश्रमजी लोगों को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भड़का रहे हैं ।

स्वामीजी धर्मप्रचार करते हुए मेरठ पहुँचे। मथुरा प्रशासन मेरठ प्रशासन से उन पर निगाह रखने का अनुरोध पहले ही कर चुका था ।

एक दिन एक सरकारी अधिकारी स्वामीजी के प्रवचन में पहुँचा। वह चुपचाप प्रवचन सुनता रहा। बाद में उनके चरण स्पर्श करते हुए बोला, ‘महाराज, आपके प्रवचन से मैं बहुत प्रभावित हूँ।

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