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सबसे बड़ा दान !!

कई दिनों तक मगध में थेरने के बाद, गौतम बुद्ध मगध की राजधानी से प्रस्थान कर रहे थे। जब इस बात का पता सभी को चला तो वहां के राजा और बड़े बड़े सेठ सभी गौतम बुद्ध के पास आए। वह सभी लोग बुद्ध के लिए बड़े बड़े उपहार भेट करने के लिए लाए। उन सभी के अंदर यह लालसा जागी हुई थी बुद्ध उनके उपहार से ज्यादा प्रसन्न होंगे।

हर कोई अपने उपहारों को सर्बश्रेष्ट समझ रहा था। उनमे से जब भी कोई व्यक्ति दान देने के लिए बुद्ध की तरफ आगे बढ़ता, बुद्ध दूर से ही हाथ हिलाकर उसे स्वीकार करके आगे बढ़ा देते। बुद्ध यह बर्ताब सभी लोगों के साथ कर रहे थे। तभी उस भीड़ में से एक बृद्ध महिला आकर बुद्ध के सामने खड़ी हो गई। और बुद्ध को प्रणाम करते हुए कहने लगी, “मैं भी आपको कुछ देना चाहती हूँ, परन्तु मैं बहुत गरीब हूँ। आज बगीचे में मुझे यह आम मिले, मैं इसे आधा खा चुकी थी तभी मुझे आपकी प्रस्थान की सुचना मिली और मैं आपके दर्शन के लिए यहाँ चली आई। मेरे पास खाये हुए आम के सीबाई आपको देने के लिए कुछ भी नहीं है। क्या आप मेरी इस भेट को स्वीकार करेंगे?”

बुद्ध अपने आसन से उठे और उस बृद्ध महिला के पास जाकर और अपनी झोली फैलाकर उस आधे आम की भेट को बड़े ही प्रेमपूर्वक स्वीकार किया। यह दृश्य देखकर वहां के राजा और बड़े बड़े सेठ आश्चर्य में पड़ गए। वहां के राजा महाराज बिन्दुसार से रहा नहीं गया और वह बुद्ध से कहने लगे, “भगवन एक से एक महंगे और बहुमूल्य उपहार तो केबल अपने हाथ हिलाकर ही सवीकार कर लिए परन्तु इस बृद्धा के जुटे आम में आपको ऐसी क्या विशेषता दिखी, जो आपको अपना आसन छोड़ना पड़ा।”

बुद्ध मुस्कुराए और महाराज बिन्दुसार को समझाते हुए कहने लगे, “इस बृद्धा ने मुझे अपने जीवन की समस्त पूंजी दे दी। आप लोगों ने मुझे जो भी उपहार दिया, वह तो आपकी संपत्ति में से छोटा सा अंश मात्र है। अपने दान तो दिया लेकिन दान देने का अहंकार अभी भी आपके अंदर से गया नहीं। इस बृद्धा ने मेरे प्रति अपने प्रेम और श्रद्धा को दिखाते हुए अपना सब कुछ मुझपर समर्पित कर दिया। फिर भी इसके मुँह पर असीम शांति और करुणा है।”

फिर बुद्ध राजा बिन्दुसार को बताने लगे, “सच्चे मन से दिया हुआ दान ही सच्चा दान होता है।”उन सभी धनी लोगों को अपनी गलती का एहसास हुआ और सभी बुद्ध से क्षमा मांगने लगे।

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