एक महान गुरु के तेजस्वी शिष्य थे अरविन्द | ब्राह्मण थे इसलिए भिक्षा मांग कर जीवन व्यापन करते थे | नित्य सुबह भिक्षा के लिए जाते और केवल उतना ही लेते जितने की जरुरत हो | उनके इस स्वभाव से सभी बहुत प्रभावित थे | और इसी कारण वो एक प्रिय शिष्य थे |
एक बार अरविन्द भिक्षा के लिए नगर सेठ के घर गये और ज़ोर से आवाज लगाई भवति भिक्षां देहि | यह सुन एक सुंदर कन्या बाहर आई जिसने अरविन्द को भिक्षा दी | उसकी सुन्दरता देख अरविन्द चकित रह गया | उसकी नजर कन्या से हट ही नहीं रही थी | अपने आश्रम में जाकर भी अरविन्द को हर समय कन्या की वो मोहिनी छवि दिखाई दे रही थी | उनका मन दीक्षा से ज्यादा भिक्षा में लग गया और वे नित प्रतिदिन नगर सेठ के घर भिक्षा लेने जाने लगे | अरविन्द भी एक सुडोल शरीर के तेजस्वी थे | कन्या के मन को भी अरविन्द भाने लगा |
एक दिन कन्या सब छोड़ अरविन्द के साथ चली गई | दोनों प्रेम के मोह में जीने लगे | अरविन्द के पास जो भी था | वो सब ख़त्म हो गया | उनके इस व्यवहार के कारण उनकी छवि भी ख़राब हुई और सभी अरविन्द से दूर हो गये जिसका आभास तक अरविन्द को ना था वो बस मोहिनी के प्रेम में पड़े हुए थे |
जीवन व्यापन मुश्किल हो गया | तब उस कन्या ने अरविन्द से कहा कि वो नगर के राजा के पास जाकर सो दीनार भिक्षा में ले आये | जिससे उनका गुरुकुल चल निकलेगा | अरविन्द ने बात मान ली और वे राजा के महल में पहुँचे लेकिन उन्हें घुसपेठ समझ कर बंदी बना लिया गया |
दुसरे दिन राजा के सामने पैश किया गया | तब राजा ने उनसे सब बताने को कहा | अरविन्द ने सत्य का हाथ अब तक ना छोड़ा था | अतः उसने सारी बात राजा को बताई | यह सुनकर राजा को हँसी आ गई और उसने अरविन्द से मुँह मांगी भिक्षा मांगने को कहा | अरविन्द को इसकी अपेक्षा ना थी | उसके मन में लालच आगया उसे लगा अच्छा अवसर हैं | इतना मांग लेना चाहिये कि जीवन पूरा बिना कार्य के कट जायें | और उसने बिना विचार किये राजा से उनका राज पाठ ही मांग डाला | यह सुनकर सभी सभासद आश्चर्यचकित रह गये | राजा ने हँसकर कहा हे भिक्षुक ! आप जैसा कहते हैं वही होगा | आज से इस राज्य के राजा आप हैं | मैं और मेरा परिवार अब से वन में वास करेंगे | यह सुनकर अरविन्द सन्न रह गया | उसे राजा के ऐसे उत्तर की कल्पना नहीं थी |तब अरविन्द को अहसास हुआ कि यह सब ऐशो आराम, भोग, विलास एवम कामुकता आदि क्षणिक हैं |मनुष्य की महानता उसके कर्म में हैं |इस घटना से अरविन्द को अपने ज्ञान का पुनः आभास हुआ और उसने राजा से हाथ जोड़ क्षमा मांगी और उनका राज्य पाठ लौटा दिया और स्वयम वापस जाकर अपनी मेहनत से जीवन व्यापन करने लगा |और उसे पुनः सबका प्रेम मिला इस पर कहा गया कि सुबह का भुला अगर शाम को घर आ जायें तो उसे भुला नहीं कहते |
यह कहानी इस कहावत को चरितार्थ करती हैं | आज के समय में मनुष्य कामुकता के पीछे इस कदर भाग रहा हैं कि उसे अच्छे, बुरे, मान- सम्मान का भान तक नहीं रह गया हैं और अगर समय रहते इसका उपाय ना किया जाए तो उस मनुष्य का पतन निश्चित हैं |
किसी भी स्थिती में मनुष्य को अपने आधार, मार्ग एवम सत्य को नहीं छोड़ना चाहिये लेकिन अगर किसी से ऐसी गलती हो जाए और उसे इसका भान हो साथ वह इसका प्रायश्चित करने की इच्छा रखता हो तो ऐसे व्यक्ति को दोषी कहना गलत होगा | उसे उसकी गलती सुधारने का पूरा मौका दिया जाना चाहिये |इसलिए कहते हैं अगर सुबह का भुला शाम को घर आ जायें तो उसे भुला नहीं कहते|