एक धनाढ्य को अपनी अकूत संपत्ति पर भारी घमंड हो गया। वह प्रायः अपने पुत्र से कहा करता कि सुख-सुविधा के जितने साधन उसके पास हैं, अन्य किसी के पास नहीं हैं। वह कहता कि गाँवों की हालत देखोगे, तो पता चलेगा कि लोग कितने अभाव में दिन काटते हैं।
एक दिन वह पुत्र को कार में बिठाकर एक गाँव ले गया । गाँव में वह एक परिचित किसान के घर पहुँचा। किसान ने बड़े प्रेम से उसका स्वागत किया।
मिट्टी की हंडिया में रखा गरम दूध उसे पिलाया, ताजा मक्खन, मट्ठे और सब्जी के साथ गरम-गरम रोटियाँ खिलाई। लौटते समय कार में गुड़ व गन्ने रख दिए।
लौटते समय सेठ ने पुत्र से पूछा, बेटा, देखा तुमने गाँव की हालत। सच बताना तुम्हें कैसा लगा?’ बेटे ने कहा, ‘पिताजी! यदि सच ही जानना चाहते हैं,
तो सुनिए! हमारे घर में केवल एक कुत्ता है, उस किसान के घर में चार गाएँ और बैल बँधे हैं। उसके बच्चे ताजी हवा में झूले झूलकर किलकारियाँ मार रहे थे।
हमारी कोठी के पिछवाड़े छोटा सा स्विमिंग पूल है, जबकि किसान के घर के पास नदी बह रही थी। हम फ्रिज में रखी कई-कई दिन पुरानी सब्जियाँ खाते हैं,
जबकि उसने ताजा सब्जियों से भोजन कराया। हम एकाकी जीवन बिताते हैं और जब हम उस किसान के घर पहुँचे, तो कई लोग हमारे स्वागत के लिए आए थे।
उनका अनूठा प्रेमपूर्ण व्यवहार देखकर मुझे लगा कि हमारे मुकाबले वे कहीं ज्यादा अच्छे इनसान हैं और हमसे ज्यादा अमीर भी। पुत्र के शब्द सुनकर सेठ का अहंकार काफूर हो चुका था। उस दिन के बाद उसने खुद को अमीर कहना छोड़ दिया।