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सेवा ही धर्म है !!

आयरलैंड में एक पादरी के परिवार में जन्मी मारग्रेट एलिजाबेथ नोबल स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित होकर भारत आईं। 25 मार्च, 1898 को मार ने स्वामीजी से दीक्षा ग्रहण की ।

स्वामीजी ने उनका नामकरण किया ‘भगिनी निवेदिता । स्वामीजी ने भगिनी निवेदिता को गीता, महाभारत, रामचरितमानस आदि का अध्ययन कराया और भारत के इतिहास, धर्म व संस्कृति से अवगत कराया।

भगिनी निवेदिता ने अपना संपूर्ण जीवन भारत में रहकर भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में लगा दिया।

भगिनी निवेदिता जब पहली बार गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर के निवास पर पहुँचीं, तो परिचय प्राप्त करने के बाद रवींद्र बाबू ने अपनी पुत्री को बुलाया और निवेदिता से कहा, ‘तुम मेरी बेटी को अंग्रेजी भाषा, साहित्य और संस्कृति का अध्ययन कराओ।’

निवेदिता ने विनम्रता से कहा, ‘गुरुदेव, मैं स्वयं अंग्रेजीयत का त्याग कर भारतीय बन गई हूँ। ऐसी स्थिति में आप मुझसे यह अपेक्षा न रखें कि मैं भारत जैसे महान् देश में किसी विदेशी भाषा या संस्कृति का शिक्षण दूँगी । ‘

रवींद्र बाबू अंग्रेज युवती की भारत भक्ति देखकर हतप्रभ रह गए। उन्होंने आशीर्वाद दिया कि वे भारत तथा भारतीयता की सेवा के अपने संकल्प को पूरा करें। बंगाल में एक बार भीषण बाढ़ आई ।

भगिनी निवेदिता को बाढ़ पीड़ितों की सेवा करते देख रवींद्र बाबू ने कहा, ‘बेटी, तुमने वास्तव में अपने गुरु के सूत्र, सेवा ही धर्म है, को साकार रूप देकर अपना जीवन सफल बना लिया है। ‘

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