आम्रपाली अपने जमाने की अपूर्व सुंदरी, कुशल गायिका और नर्तकी थी। राजकुमार बिंबिसार से उसने प्रेम विवाह किया था। राजमहल में उसे अपमान के घूँट पीने पड़े। वह वैशाली नगर के बाहर एक आम्र वन में पुत्र जीवक के साथ रहकर संगीत-साधना में रत रहा करती थी।
एक दिन आम्रपाली पुत्र के साथ भगवान् बुद्ध के दर्शन के लिए पहुँची। उसने अत्यंत विनम्रता से कहा, ‘गुरुवर, मेरे पास अपार धन-संपदा है, फिर भी मेरा जीवन अतृप्त है। मैं आपकी शरण में हूँ।
बुद्ध ने कहा, ‘आम्रपाली, अन्य सांसारिक वस्तुओं की तरह सुंदरता आती है और चली जाती है। धन-संपदा और ख्याति भी क्षणभंगुर हैं। ध्यान-साधना के माध्यम से जो आत्मिक संतोष मिलता है, वही जीवन में शाश्वत रहता है।
इस जीवन के जो क्षण शेष रह गए हैं, उन्हें निरर्थक आमोद-प्रमोद में नष्ट नहीं करना चाहिए। साधना, ध्यान, प्राणायाम व संयमपूर्ण जीवन में पल-पल लगाओ, जीवन सहज ही सार्थक हो जाएगा।
बुद्ध के चंद शब्दों से आम्रपाली को प्रेरणा मिली और वह खुशी- खुशी लौट आई। कालदुयी और सारिपुत्र भी उस समय उपस्थित थे। सारिपुत्र ने भगवान् बुद्ध से प्रश्न किया, ‘स्त्री के सौंदर्य को किस दृष्टि से देखना चाहिए?’
बुद्ध ने जवाब दिया, ‘सुंदरता और कुरूपता, दोनों का सृजन पाँच त्त्वों से होता है। मुक्त पुरुष न तो शारीरिक सौंदर्य से सम्मोहित होता है और न कुरूपता से विरक्त। एक ही सौंदर्य शाश्वत है और वह है, करुणामय हृदय।
करुणा का अर्थ है-अहेतुक प्रेम, अर्थात् बदले में किसी से किसी प्रकार की अपेक्षा न करना। बुद्ध की बात सुनकर सारिपुत्र की जिज्ञासा शांत हो गई।