हरी बोल हरी बोल हरी बोल हरी बोल,
सारे जग को पालनहारी,
सारी धरती को रखना तारी,
हो, तेरी लीला अपरमपारी
हरी बोल, हरी बोल हरी बोल, हरी बोल……
बैकुंठ धामी तोहे जगह सुहाई,
शेषनाग सेज शैया बिछाई,
लक्ष्मी सहित झाँकी, दरश कराई,
प्रेम की जोत,
सारे जग में जग में जलाई,
अठारों प्राण करायो तूने ज्ञान,
चारों वेद करायो रसपान,
हरी बोल, हरी बोल हरी बोल, हरी बोल………
गदा के समान ब्रह्माण्ड बनायो,
कमल समान सारे जग को खिलाया,
शंख बजाके अनुधन बरसाया,
चक्र के जैसा सारा जग चकराया,
तेरे ब्रह्माण्ड का नहीं छोर,
तेरे काम का नहीं कोई मोल,
तेरी माया का नहीं कोई तोड़,
हरी बोल, हरी बोल हरी बोल, हरी बोल…….
गंगा बहावे सारे, जग को हँसावे,
मुरली बजावे सारे, जग को नचावे,
करे मन सारे, सारे जग को चलावे,
तीनों लोक नाथ, हरी कहावे,
तेरे बलन जाऊं चहुँ और,
मुरली दास कहे, जग सोय,
चाहे शाम जपो चाहे भोर,
हरी बोल, हरी बोल हरी बोल, हरी बोल………