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अनुशासन के बिना विकास नहीं

प्राचीन समय में एक नगर था। वहां एक मठ था। उस मठ के एक वरिष्ठ भिक्षु रहते थे। उनके पास अनेकों सिद्धियां थीं, जिसके चलते उनका सम्मान होता था। सम्मान बहुत बड़ी चीज होती है ये वो जानते थे। इसलिए उनकी महत्वाकांक्षा और कुछ न थी।

एक दिन दोपहर के समय वह अपने शिष्यों के साथ ध्यान कर रहे थे। अन्य भिक्षु शिष्य भूखे थे। तब वरिष्ठ भिक्षु ने कहा, ‘क्या तुम भूखे हो?’ वह भिक्षु बोला, ‘यदि हम भूखे भी हों तो क्या?’ मठ के नियम के अनुसार दोपहर में भोजन नहीं कर सकते हैं।

वरिष्ठ भिक्षु बोले, ‘तुम चिंता मत करो मेरे पास कुछ फल हैं।’ उन्होंने वह फल शिष्य भिक्षु को दे दिए। उसी मठ में एक अन्य भिक्षु थे वह मठ के नियमों को लेकर जागरुक रहते थे। वह एक सिद्ध पुरुष थे। लेकिन ये बाद उनके सिवाय और कोई नहीं जानता था।

अगले दिन उन्होंने घोषणा की जिसने भी भूख के कारण मठ का नियम तोड़ा है। उसे मठ से निष्काषित किया जाता है। तब उन वरिष्ठ भिक्षु ने अपना चोंगा उतारा और हमेशा के लिए उस मठ से चले गए।

In English

There was a city in ancient times. There was a monastery there. A monk lived in that monastery. He had many accomplishments, which led to his respect. Respect is a very big thing, they knew it. That’s why their ambition was nothing else.

One afternoon at the afternoon he was meditating with his disciples. The other monk’s disciples were hungry. Then the senior monk said, ‘Are you hungry?’ The monk said, ‘If we are hungry then what?’ According to the rules of the monastery can not eat in the afternoon.

The senior monk said, ‘Do not you worry I have some fruits.’ They gave that fruit to the disciple monk. Another monk in the same monastery used to be aware of the rules of the monastery. He was a perfect man. But after this nobody else knew except him.

 

The next day they announced that which broke the rule of monastery due to hunger. He is expelled from the monastery. Then those senior monks dropped their chokes and went away from that monastery forever.

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