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संयम और सदाचार

भगवान् महावीर अपने उपदेशों में आत्मा की शुद्धि पर विशेष ध्यान देने की प्रेरणा दिया करते थे। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, ‘अहिंसा, संयम, तप, क्षमा, स्वाध्याय से आत्मा शुद्ध होती है।

आत्मा को जानने के तीन साधन हैं-सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन और सम्यक चरित्र। जो राग-द्वेष, मोह-मद आदि विकारों को जीत लेता है, वह स्वयं ही आत्मा से परमात्मा बन जाता है।

महावीर कहते हैं, ‘सदाचार और संयम ही आत्मा को पूर्ण शुद्ध बनाने में समर्थ है। सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति की आत्मशक्ति इतनी प्रबल होती है कि वह किसी भी संकट से भयभीत नहीं होता।

यहाँ तक कि काल से भी नहीं। अच्छे मार्ग पर चलनेवाला अपना ही मित्र एवं हितैषी है, जबकि बुरे मार्ग पर चलनेवाला अपना ही शत्रु है। सभी प्रकार के दुर्गुणों एवं दुर्व्यसनों का त्यागकर देनेवाला इहलोक और परलोक- दोनों में सुख प्राप्त करता

है। महावीर कहते हैं, ‘आत्मा ही नरक की वैतरणी नदी है। आत्मा ही स्वर्ग का नंदन वन है। आत्मा ही सर्व इच्छापूर्ति करने वाली धरती की कामधेनु है, इसलिए सबसे पहले आत्मा को जानो।

आत्मा को शुद्ध रखने के लिए सदाचार-संयम को जीवन में उतारने का संकल्प लो।’ भगवान् महावीर ने अपने शिष्यों से कहा, ‘दया के समान धर्म नहीं, अन्नदान के समान करुणा नहीं, सत्य के समान कीर्ति नहीं और शील के समान श्रृंगार नहीं।

जो क्रोध, लोभ, भय और पाँचों इंद्रियों को जीत लेता है वह आत्मजयी होता है। संयम खलु जीवनम् अर्थात् संयम ही जीवन है । जो संयमी-सदाचारी नहीं, वह धार्मिक कदापि नहीं हो सकता।

English Translation

Lord Mahavira used to encourage in his teachings to pay special attention to the purification of the soul. He told his disciples, ‘The soul is purified by non-violence, restraint, austerity, forgiveness, self-study.

There are three means of knowing the Self – Right Knowledge, Right Philosophy and Right Character. One who conquers the vices of attachment-aversion, attachment-mad etc., he himself becomes the Supreme Soul from the soul.

Mahavira says, “Virtuosity and self-control are capable of making the soul completely pure. The self-power of a virtuous and restrained person is so strong that he is not afraid of any danger.

Not even from time to time. One who walks on the good path is his own friend and well-wisher, while the one who walks on the bad path is his own enemy. The one who renounces all kinds of vices and intoxicants, attains happiness in both here and here.

is. Mahavira says, ‘The soul is the river of hell. The soul itself is the Nandan forest of heaven. Soul is the Kamdhenu of the earth which fulfills all wishes, so first of all know the soul.

In order to keep the soul pure, take a resolution to inculcate virtue and restraint in life.’ Lord Mahavira said to his disciples, ‘There is no religion like mercy, no compassion like food donation, no fame like truth and no adornment like modesty. .

One who conquers anger, greed, fear and the five senses becomes self-conquered. Sanyam Khalu Jeevanam means restraint is life. One who is not temperate-virtuous can never be religious.

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