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चिरंजीवी हैं परशुराम

परशुरामजी के भ‍गवान विष्‍णु का छठा अवतार माना जाता है। .सतयुग और त्रेतायुग के संधिकाल में राजाओं की निरंकुशता से जनजीवन त्रस्त और छिन्न-भिन्न हो गया था। दीन और आर्तजनों की पुकार को कोई सुनने वाला नहीं था।
ऐसी परिस्थिति में महर्षि ऋचिक के पुत्र जमदग्नि अपनी सहधर्मिणी रेणुका के साथ नर्मदा के निकट पर्वत शिखर पर जमदग्नेय आश्रम (अब जानापाव) में तपस्यारत थे। उन्होंने पराशक्ति का आह्वान किया, उपासना की तब लोक मंगल के लिए वैशाख शुक्ल तृतीया को पराशक्ति, परमात्मा, ईश्वर का मध्यरात्रि को अवतरण हुआ। आश्रम में उत्साह का वातावरण फैला।
ज्योतिष एवं नक्षत्रों की यति-मति-गति अनुसार बालक का नाम ‘राम’ रखा गया। बालक अपने ईष्ट शिव का स्मरण करते हुए ब़ड़ा होने लगा। राम का अपने ईष्ट शिव से साक्षात्कार हुआ। अमोघ शस्त्र परशु (फरसा) और धनुष प्राप्ति के साथ शक्ति अर्जन हेतु मां परांबा, महाशक्ति त्रिपुर सुंदरी की आराधना का आदेश भी प्राप्त किया।
परशुधारी परशुराम को शास्त्र विद्या का ज्ञान जमदग्नि ऋषि ने दे दिया था, किंतु शिव प्रदत्त अमोघ परशु को चलाने की कला सीखने के लिए महर्षि कश्यप के आश्रम में भेजा। परशुराम शस्त्र कला में पारंगत होने के बाद गुरु से आशीर्वाद प्राप्त कर पिता के आश्रम लौटे। वहां पिता का सिर ध़ड़ से अलग, आश्रम के ऋषि, ब्राह्मण और गुरुकुल के बालकों के रक्तरंजित निर्जीव शरीर का अंबार प़ड़ा मिला। परशुराम हतप्रभ हो गए। इसी बीच माता की कराह और चीत्कार सुनाई दी। दौ़ड़कर माता के निकट पहुंचे। माता ने 21 बार छाती पीटी।
परशुराम ने सब जान लिया कि कार्तवीर्य (सहस्रबाहु) के पुत्र एवं सेना ने तांडव मचाया है। परशुराम वायु वेग से माहिष्मति पहुंचे। उन्होंने कार्तवीर्य की सहस्र भुजाओं को अपने प्रखर परशु से एक-एक कर काट दिया। अंत में शीश भी काटकर धूल में मिला दिया।
इतना ही नहीं, परशुराम का परशु चलता ही रहा और एक-एक अनाचारी को खोज-खोजकर नष्ट कर दिया। परशुरामजी से यह कृत्य लोकहित में ही हुआ है किंतु कतिपय लोगों ने उन्हें आवेशी करार दिया है। परशुरामजी में आवेश का प्रादुर्भाव कभी नहीं हुआ। परिस्थितिजन्य स्थिति में कोमल भी कठोर हो जाता है। परशुरामजी के कोमल मन में आवेश नहीं, कठोरता का प्रादुर्भाव अवश्य होता रहा है।
यदि हम पुराणों का अध्ययन करें तो ज्ञात होगा कि ब्राह्मण जाति और सर्व समाज के हितैषी भगवान परशुराम दया, क्षमा, करुणा के पुंज हैं, साथ ही उनका शौर्य प्रताप हम में ऊर्जा का संचार करने में समर्थ है।माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मणों के इतिहास-लेखक, श्रीबाल मुकुंद चतुर्वेदी के अनुसार विष्णु के छठे ‘आवेश अवतार’ भगवान परशुराम का जन्म सतयुग और त्रेता के संधिकाल में 5142 वि.पू. वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन-रात्रि के प्रथम प्रहर प्रदोष काल में हुआ था। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम प्रहर में 6 उच्च के ग्रहों से युक्त मिथुन राशि पर राहु के स्थित रहते माता रेणुका के गर्भ से भृगु ऋषि के कुल में परशुराम का प्रादुर्भाव हुआ था।
ऋचीक-सत्यवती के पुत्र जमदग्नि, जमदग्नि-रेणुका के पुत्र परशुराम थे। ऋचीक की पत्नी सत्यवती राजा गाधि (प्रसेनजित) की पुत्री और विश्वमित्र (ऋषि विश्वामित्र) की बहिन थी। परशुराम सहित जमदग्नि के 5 पुत्र थे।
जन्म स्थान : भृगुक्षेत्र के शोधकर्ता साहित्यकार शिवकुमार सिंह कौशिकेय के अनुसार परशुराम का जन्म वर्तमान बलिया के खैराडीह में हुआ था। उन्होंने अपने शोध और खोज में अभिलेखिय और पुरातात्विक साक्ष्यों प्रस्तुत किए हैं। श्रीकौशिकेय अनुसार उत्तर प्रदेश के शासकीय बलिया गजेटियर में इसका चित्र सहित संपूर्ण विवरण मिल जाएगा। एक अन्य किंवदंती के अनुसार मध्यप्रदेश के इंदौर के पास स्थित महू से कुछ ही दूरी पर स्थित है जानापाव की पहाड़ी पर भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। एक तीसरी मान्यता अनुसार छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में घने जंगलों के बीच स्थित कलचा गांव में उनका जन्म हुआ था। एक अन्य चौथी मान्यता अनुसार उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर के जलालाबाद में जमदग्नि आश्रम से करीब दो किलोमीटर पूर्व दिशा में हजारों साल पुराने मन्दिर के अवशेष मिलते हैं जिसे भगवान परशुराम की जन्मस्थली कहा जाता है।
परशुराम के गुरु : परशुराम को शास्त्रों की शिक्षा दादा ऋचीक, पिता जमदग्नि तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा अपने पिता के मामा राजर्षि विश्वमित्र और भगवान शंकर से प्राप्त हुई। च्यवन ने राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या से विवाह किया। परशुराम योग, वेद और नीति में पारंगत थे। ब्रह्मास्त्र समेत विभिन्न दिव्यास्त्रों के संचालन में भी वे पारंगत थे। उन्होंने महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की।
परशुराम के शिष्य : त्रैतायुग से द्वापर युग तक परशुराम के लाखों शिष्य थे। महाभारतकाल के वीर योद्धाओं भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण को अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा देने वाले गुरु, शस्त्र एवं शास्त्र के धनी ॠषि परशुराम का जीवन संघर्ष और विवादों से भरा रहा है।
माता का सिर काट दिया : परशुराम के 4 बड़े भाई थे। एक दिन जब सभी पुत्र फल लेने के लिए वन चले गए, तब परशुराम की माता रेणुका स्नान करने गईं। जिस समय वे स्नान करके आश्रम को लौट रही थीं, उन्होंने गन्धर्वराज चित्रकेतु (चित्ररथ) को जलविहार करते देखा। यह देखकर उनके मन में विकार उत्पन्न हो गया और वे खुद को रोक नहीं पाईं। महर्षि जमदग्नि ने यह बात जान ली। इतने में ही वहां परशुराम के बड़े भाई रुक्मवान, सुषेणु, वसु और विश्वावसु भी आ गए। महर्षि जमदग्नि ने उन सभी से बारी-बारी अपनी मां का वध करने को कहा, लेकिन मोहवश किसी ने ऐसा नहीं किया। तब मुनि ने उन्हें श्राप दे दिया और उनकी विचार शक्ति नष्ट हो गई।
फिर वहां परशुराम आए और तब जमनग्नि ने उनसे यह कार्य करने के लिए कहा। उन्होंने पिता के आदेश पाकर तुरंत अपनी मां का वध कर दिया। यह देखकर महर्षि जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और परशुराम को वर मांगने के लिए कहा। तब परशुराम ने अपने पिता से माता रेणुका को पुनर्जीवित करने और चारों भाइयों को ठीक करने का वरदान मांगा। साथ ही उन्होंने कहा कि इस घटना की किसी को स्मृति न रहे और अजेय होने का वरदान भी मांगा। महर्षि जमदग्नि ने उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी कर दीं। माता रेणुका कोंकण नरेश की पुत्री थीं।
हैहयवंशी राजाओं से युद्ध : समाज में आम धारणा यह है कि परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रियविहीन कर दिया था। यह धारणा गलत है। भृगुक्षेत्र के शोधकर्ता साहित्यकार शिवकुमार सिंह कौशिकेय के अनुसार जिन राजाओं से इनका युद्ध हुआ उनमें से हैहयवंशी राजा सहस्त्रार्जुन इनके सगे मौसा थे। जिनके साथ इनके पिता जमदग्नि ॠषि कई बातों को लेकर विवाद था जिसमें दो बड़े कारण थे। पहला कामधेनु और दूसरा रेणुका।
परशुराम राम के समय में हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं का अत्याचार था। भार्गव और हैहयवंशियों की पुरानी दुश्मनी चली आ रही थी। हैहयवंशियों का राजा सहस्रबाहु अर्जुन भार्गव आश्रमों के ऋषियों को सताया करता था। एक समय सहस्रबाहु के पुत्रों ने जमदग्नि के आश्रम की कामधेनु गाय को लेने तथा परशुराम से बदला लेने की भावना से परशुराम के पिता का वध कर दिया। परशुराम की मां रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर उनकी चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गई।

इस घोर घटना ने परशुराम को क्रोधित कर दिया और उन्होंने संकल्प लिया- मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का नाश कर दूंगा। इसी कसम के तहत उन्होंने इस वंश के लोगों से 36 बार युद्ध कर उनका समूल नाश कर दिया था। तभी से यह भ्रम फैल गया कि परशुराम ने धरती पर से 36 बार क्षत्रियों का नाश कर दिया था।
हैहयवंशियों के राज्य की राजधानी महिष्मती नगरी थी जिसे आज महेश्वर कहते हैं जबकि परशुराम और उनके वंशज गुजरात के भड़ौच आदि क्षे‍त्र में रहते थे। परशुराम ने अपने पिता के वध के बाद भार्गवों को संगठित किया और सरस्वती नदी के तट पर भूतेश्‍वर शिव तथा महर्षि अगस्त्य मुनि की तपस्या कर अजेय 41 आयुध दिव्य रथ प्राप्त किए और शिव द्वारा प्राप्त परशु को अभिमंत्रित किया।
इस जबरदस्त तैयारी के बाद परशुराम ने भड़ौच से भार्गव सैन्य लेकर हैहयों की नर्मदा तट की बसी महिष्मती नगरी को घेर लिया तथा उसे जीतकर व जलाकर ध्वस्त कर उन्होंने नगर के सभी हैहयवंशियों का भी वध कर दिया। अपने इस प्रथम आक्रमण में उन्होंने राजा सहस्रबाहु का महिष्मती में ही वध कर ऋषियों को भयमुक्त किया।
इसके बाद उन्होंने देशभर में घूमकर अपने 21 अभियानों में हैहयवंशी 64 राजवंशों का नाश किया। इनमें 14 राजवंश तो पूर्ण अवैदिक नास्तिक थे। इस तरह उन्होंने क्षत्रियों के हैहयवंशी राजाओं का समूल नाश कर दिया जिसे समाज ने क्षत्रियों का नाश माना जबकि ऐसा नहीं है। अपने इस 21 अभियानों के बाद भी बहुत से हैहयवंशी छुपकर बच गए होंगे।
चारों युग में परशुराम : सतयुग में जब एक बार गणेशजी ने परशुराम को शिव दर्शन से रोक लिया तो, रुष्ट परशुराम ने उन पर परशु प्रहार कर दिया, जिससे गणेश का एक दांत नष्ट हो गया और वे एकदंत कहलाए। त्रेतायुग में जनक, दशरथ आदि राजाओं का उन्होंने समुचित सम्मान किया। सीता स्वयंवर में श्रीराम का अभिनंदन किया।
द्वापर में उन्होंने कौरव-सभा में कृष्ण का समर्थन किया और इससे पहले उन्होंने श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध करवाया था। द्वापर में उन्होंने ही असत्य वाचन करने के दंड स्वरूप कर्ण को सारी विद्या विस्मृत हो जाने का श्राप दिया था। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्र विद्या प्रदान की थी। इस तरह परशुराम के अनेक किस्से हैं।
चिरंजीवी हैं परशुराम : कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें कल्प के अंत तक तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया। भगवान परशुराम किसी समाज विशेष के आदर्श नहीं है। वे संपूर्ण हिन्दू समाज के हैं और वे चिरंजीवी हैं। उन्हें राम के काल में भी देखा गया और कृष्ण के काल में भी। उन्होंने ही भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध कराया था। कहते हैं कि वे कलिकाल के अंत में उपस्थित होंगे। ऐसा माना जाता है कि वे कल्प के अंत तक धरती पर ही तपस्यारत रहेंगे। पौराणिक कथा में वर्णित है कि महेंद्रगिरि पर्वत भगवान परशुराम की तप की जगह थी और अंतत: वह उसी पर्वत पर कल्पांत तक के लिए तपस्यारत होने के लिए चले गए थे।
नागा साधु हिन्दू धर्मावलम्बी साधु हैं जो कि नग्न रहने तथा युद्ध कला में माहिर होने के लिये प्रसिद्ध हैं। ये विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं जिनकी परम्परा आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गयी थी।

English Translation

Parshuram is believed to be the sixth incarnation of Lord Vishnu. In the treaty of Satyuga and Tretayuga, life was stricken and disintegrated due to the autocracy of the kings. There was no one to listen to the call of the oppressed and the people.
In such a situation, Jamadagni, son of Maharishi Hrithik, along with his co-star Renuka, was doing tapasya at the Jamadagnay Ashram (now Janapav) on the mountain top near Narmada. He called for Parashakti, worshiped then Vaisakha Shukla Tritiya for Lok Mangal, Parashakti, God, God came at midnight. There was an atmosphere of excitement in the ashram.
According to the astrology and constellation of the constellations, the child was named ‘Ram’. The child started growing up remembering his beloved Shiva. Ram was interviewed by his beloved Shiva. Also received the order of worship of Maa Paramba, Mahashakti Tripur Sundari for earning power with the attainment of Amogha Shastra Parshu (Farsa) and Dhanush.
The sage Jamdagni had given the knowledge of scripture to Parasuhari Parshuram, but sent Shiva conferred Amogha Parshu to the ashram of Maharishi Kashyapa to learn the art of running. Parshuram returned to his father’s ashram after getting his mastery in weapons of art and receiving blessings from the guru. There the father’s head was separated from the torso, and the blood of the bloodied lifeless body of the sage of the ashram, the Brahmin and the children of the Gurukul was found. Parashuram was shocked. Meanwhile, the mother’s moan and scream was heard. Ran close to mother. Mata patted chest 21 times.
Parashurama knew that the son and army of Kartavirya (Sahasrabahu) had created a massacre. Parashurama reached Mahishmati by air velocity. He cut Kartavirya’s thousands of arms one by one with his sharp wings. In the end, the glass was also cut and added to the dust.
Not only this, Para परurāma’s parasol kept on running and destroyed every one of the evildoers. From Parshuramji, this act has been done in public interest but some people have called him a charge. The impulse never emerged in Parashuramaji. In the circumstantial situation, gentle also becomes rigid. Parshuram’s gentle mind does not have any charge, hardness has been born.
If we study the Puranas, it will be known that Lord Parashuram, the benevolent God of the Brahmin caste and all the society, is the bulwark of mercy, forgiveness and compassion, along with his valor Pratap is capable of transmitting energy in us. , According to Sribal Mukund Chaturvedi, the sixth ‘Avesh avatar’ of Vishnu, Lord Parshuram was born in the Samyuga of Satyuga and Treta in 5142 BC. The first day of the day and night of Vaishakh Shukla Tritiya took place in Pradosh Kaal. On the Tritiya Tithi of Shukla Paksha of Vaishakh month, in the first half of the night in Punavasu Nakshatra, Parashurama was born in the clan of Bhrigu Rishi from the womb of Mata Renuka while situated by Rahu on Gemini sign with 6 high planets.
Jamadagni, son of Ritchik-Satyavati, was Parashurama, son of Jamadagni-Renuka. Ritchik’s wife Satyavati was the daughter of King Gadhi (Prasenjit) and the sister of Vishwamitra (Rishi Vishwamitra). Jamadagni had 5 sons including Parashurama.
Place of Birth: According to the researcher litterateur Shivkumar Singh Kaushikeya of Bhrigukhetra, Parashurama was born in Khairadih, present-day Ballia. He has presented archival and archaeological evidence in his research and discovery. According to Shrikaushikay, a complete description will be found in the Ballia Gazetteer of Uttar Pradesh, including its picture. According to another legend, Lord Parashurama was born on the hill of Janapav, situated just a short distance from Mhow, near Indore, Madhya Pradesh. According to a third belief, he was born in Kalacha village, situated amidst dense forests in Surguja district of Chhattisgarh. According to another fourth belief, the remains of a thousand year old temple, which is called the birthplace of Lord Parshuram, are found about two kilometers east of the Jamadagni ashram in Jalalabad, Shahjahanpur in Uttar Pradesh.
Parashurama’s Guru: Parashurama received the education of the scriptures from Dada Ritchik, father Jamadagni, and arms to his father’s maternal uncle Rajarshi Vishwamitra and Lord Shankar. Chyavan married Sukanya, the daughter of King Sharyati. Parashurama was proficient in Yoga, Vedas and Niti. He was also proficient in the operation of various divinity including Brahmastra. He was educated in the ashram of Maharishi Vishwamitra and Ritchik.
Parashurama’s disciples: Parashurama had millions of disciples from Tritayuga to Dwapara Yuga. The life of Guru, Arms and Shastra rich sage Parshuram, who taught weapons and weapons to Bhishma, Dronacharya and Karna, the brave warriors of Mahabharata period, has been full of conflicts and controversies.
Mother beheaded: Parashurama had 4 elder brothers. One day when all the sons went to the forest to take fruits, Renuka, Parshuram’s mother went to bathe. While she was bathing and returning to the ashram, she saw Gandharvaraj Chitraketu (Chitraratha) doing the water bath. Seeing this, a disorder arose in her mind and she could not stop herself. Maharishi Jamadagni came to know this. At the same time, Parashuram’s elder brothers Rukmavan, Sushenu, Vasu and Vishvavasu also came there. Maharishi Jamadagni asked all of them to kill his mother in turn, but no one was tempted to do so. Then the sage cursed him and his thought power was destroyed.
Then Parashurama came there and then Jamagni asked him to do this work. He killed his mother immediately after getting the father’s orders. Seeing this, Maharishi Jamadagni was very pleased and asked Parashurama to ask for a bride. Parashurama then asked his father a boon to revive mother Renuka and cure the four brothers. He also said that no one should remember this incident and also asked for the boon of being invincible. Maharishi Jamadagni fulfilled all his wishes. Mata Renuka was the daughter of the King of Konkan.
War with the Haihayavanshi Kings: The common belief in society is that Parashurama had made the earth 21 times devoid of Kshatriyas. This assumption is incorrect. According to the researcher litterateur Shivkumar Singh Kaushikeya of Bhrigukshetra, hayavanshi king Sahastrajun was one of his warts. With whom his father Jamadagni was in dispute over many things, for which there were two big reasons. The first is Kamadhenu and the second Renuka.
During the time of Parashurama Rama, there was atrocity of the Haihayavasi Kshatriya kings. The old rivalry of Bhargava and Haihayavanshi was going on. Sahasrabahu Arjuna, the king of the Haihayavanshi, used to torment the sages of the ashrams. At one time Sahasrabahu’s sons killed Parashurama’s father in the spirit of taking Kamdhenu cow of Jamadagni’s ashram and taking revenge on Parashurama. Parshuram’s mother Renuka was distracted by her husband’s murder and sati entered his funeral pyre.

This terrible incident enraged Parashurama and he vowed – I will destroy all the Kshatriyas of the Haihaya dynasty. Under this oath, he fought the people of this dynasty 36 times and destroyed them completely. Since then, the confusion spread that Parashurama had destroyed the Kshatriyas 36 times from the earth.
The capital of the kingdom of the Haihayans was the city of Mahishmati which is now called Maheshwar while Parashurama and his descendants lived in the Bharoch Adi area of ​​Gujarat. Parashurama organized the Bhargavas after the slaughter of his father and meditated Bhuteshwar Shiva and Maharishi Agastya Muni on the banks of the Saraswati River and obtained 41 ageless divine chariots and invoked Parshu received by Shiva.
After this tremendous preparation, Parshuram took the Bhargava army from Bharoch, surrounded the Mahishmati town on the banks of the Narmada coast and killed and killed all the hayavanshis of the city. In his first attack, he killed King Sahasrabahu in Mahishmati itself and freed the sages from fear.
After this, he wandered across the country in his 21 campaigns and destroyed the Haihayavanshi 64 dynasties. Of these, 14 dynasties were completely non-vedic atheists. In this way, they destroyed the Haihayavanshi kings of the Kshatriyas, which the society considered to be the destruction of the Kshatriyas, which is not the case. Even after this 21 campaigns, many Haihayavanshi must have survived.
Parashurama in all four ages: Once in the Satyuga when Ganesha stopped Parashurama from seeing Shiva, the angry Parashurama attacked him, causing one of Ganesha’s teeth to be destroyed and he was called Ekadanta. In Tretayuga, he paid proper respect to the kings of Janaka, Dasharatha etc. Sri Ram was greeted in Sita Swayamvar.
In Dwapara, he supported Krishna in the Kaurava-Sabha and before that he had provided Sudarshan Chakra to Sri Krishna. In the Dwapara, he was the one who cursed Karna for forgetting all the learning as a punishment for making untrue speech. He had given armaments to Bhishma, Drona and Karna. In this way there are many stories of Parashurama.
Chiranjeevi is Parshuram: Pleased with difficult austerities, Lord Vishnu gave him the blessing of staying on tapasyarat bhooloka till the end of kalpa. Lord Parashuram is not the ideal of any particular society. He belongs to the entire Hindu society and he is Chiranjeevi. He was also seen in the era of Rama and also in the era of Krishna. He was the one who provided the Sudarshan Chakra to Lord Krishna. It is said that he will be present at the end of Kalikala. It is believed that he will remain austere on earth till the end of the cycle. Legend has it that Mahendragiri mountain was the place of the penance of Lord Parashurama and eventually he went to the same mountain to Kalpanta to meditate.
Naga Sadhu is a Hindu saint who is famous for being naked and specializes in martial arts. They live in various akharas which were practiced by Adiguru Shankaracharya.

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