मनमोहन तुम रूठ गए तो कौन मेरा जग में
कान्हा कौन मेरा ज आग में
साथ रहे हो अब ना रहा तो कौन मेरा जग में
कान्हा कौन मेरा ज आग में……
ज़िंदगीका कारवाँ रुकता नहीं है
दिल है श्याम तुम बिन धड़कता नहीं है
चलने से पहले मैं गिर गया तो कौन मेरा जग में
कान्हा कौन मेरा ज आग में…..
तुम्हे क्या नहीं खबर सब कुछ पता है
दिल ये दर्द मेरा हद से गुज़रता है
मिलने से पहले बिछड़ गया तो कौन मेरा जग में
कान्हा कौन मेरा ज आग में…..
ग़म के मेले में कैसे मुलाकातें हो
मेरे इश्क़ की आखिरी साँसे हो
जीने से पहले मन मर गया तो कौन मेरा जग में
कान्हा कौन मेरा ज आग में…..
मिलने का रोग जो तुमसे लगा है
छलिया ना तुम छालो ये दास तेरा है
दर्शन से पहले भटक गया तो कौन मेरा जग में
कान्हा कौन मेरा ज आग में………………..