मस्ती मस्ती साईं की मुझे मस्ती मस्ती,
जब बाबा बुलायेगे शिर्डी की बस्ती में
हम बैठ के जायेगे ईमान की कश्ती में,
अपनी मस्ती मस्ती मस्ती में…….
हमी दोनों हुस्नो इश्क की दुनिया के है मालिक
जो तू अर्जी मैं फरशी फलक तेरा जमीन मेरी
उधर तू दर न खोले गा इधर मैं घर न छोडू गा
हुकमत अपनी अपनी है वाहा तेरी याहा मेरी
अपनी मस्ती मस्ती मस्ती में…….
घर से चली एक भगतन माला गले में डाले
पाओ में पड़ गए है अब चलते चलते छाले,
गिरने को है जमीन पर
है कौन जो सम्बाले,
आकर बचा लो बाबा मेरे बाबा जी शिर्डी वाले
अपनी मस्ती मस्ती मस्ती में……
दुनिया की नही परवाह दुनिया से क्या मैं लूँगा
और बाबा से मोहबत बाबा का सदका लूँगा
भारत के सभी संतो को इक साथ बिठा दीजिये
मैं आँख मीच कर के बाबा को पकड़ लूँगा
अपनी मस्ती मस्ती मस्ती में…..
शिर्डी में जा रहा हु मुझे रोकना नही,
बाबा बुला रहे है मुझे टोकना नही,
हवाओं आंधियो गाओ पलट पलट जाओ जाओ,
मुझे बाबा से मिलना है मेरे ररस्ते से हट जाओ
अपनी मस्ती मस्ती मस्ती में…..
साईं नाम लेते लेते मेरा काम हो रहा है,
दो हाथ जुड़ गए तो साईं राम हो रहा है
तुम्हारे दर की मिटी शान के माथे से मलता हु,
मरमत करदो साईं नाथ इस फूटे मुकदर की
अपनी मस्ती मस्ती मस्ती में……
मुझे इसका गम नही है के बदल गया जमाना
मेरी जिन्दगी है साईं कही तुम बदल न जाना,
दुनिया खिलाफ हो शिकायत नही मुझे
तेरे सिवा किसी की जरूत नही मुझे
अपनी मस्ती मस्ती मस्ती में………..