बैठे हो क्यों ओ सांवरे हमसे निगाहें फेर कर
कुछ तो इशारा कीजिये
अपने गले लगाइये गलती हमारी भूल कर
अपनी शरण में लीजिये
बैठे हो क्यों ओ सांवरे ………….
मेरा वजूद कुछ नहीं तेरे बिना ओ सांवरे
पायी है धूम में सदा मैंने तुम्ही से छाँव रे
बैठे हो क्यों ओ सांवरे ………….
कल भी तुम्हारी आस थी अब भी तुम्हारी आस है
जग के गरज में क्यों करूँ जब तू हमारे पास है
बैठे हो क्यों ओ सांवरे ………….
पुतले हैं पाप के प्रभु आखिर तो हम इंसान हैं
क्या है गलत और क्या सही माधव हमें ना ज्ञान है
बैठे हो क्यों ओ सांवरे …………….