मणिलाल एक बहुत ही मेहनती सौदागर था। वह दिनभर मन लगाकर काम करता और उसमें से जो भी उसे लाभ होता वह उसे एक पोटली में बांधकर शाम को घर लौट आता। उस पोटली में उसके सारे पैसे होते थे जो वह दिन भर कमाता था। वह अपनी दिन भर की कमाई अपने घर पर रखे हुए एक संदूक में रखता था।
वह संदूक उसके बिस्तर से कुछ ही दूरी पर रखा हुआ होता। मणिलाल रोज अपनी धन की पोटली को उस संदूक में रख देता और उस में ताला लगा कर छोड़ देता। फिर वह उस ताले को अपने तकिए के नीचे रखकर सो जाता। ऐसा वर रोज करता। उसके संदूक में ढेर सारे धन थे।
एक दिन जब मणिलाल सुबह उठा तो उसने देखा कि उसके संदूक का ताला खुला हुआ था और उसके तकिए के नीचे रखी हुई चाबी गायब थी। तब वह तुरंत उठा और जाकर अपने सन्दूक को खोलकर देखा। संदूक के खोलते ही वह दंग रह गया। उसने देखा कि संदूक में रखा हुआ धन वहां नहीं था। ऐसे में मणिलाल अपने सिपाही को आवाज लगाया, “सिपाही! सिपाही! यहां आओ जल्दी।”
मणिलाल की आवाज सुनकर सिपाही तुरंत ही अंदर आया और उसने मणिलाल से पूछा, “क्या बात है मालिक? ऐसा क्या हो गया?”
“क्या तुमने कल रात को किसी को यहाँ अंदर आते या बाहर जाते देखा था?” मणिलाल ने सिपाही से पूछा।
जी नहीं हुजूर। मैंने तो किसी को भी नहीं अंदर आते हुए और ना ही किसी को बाहर जाते हुए देखा। लेकिन क्या हुआ है आप चिंतित लग रहे हैं?” सिपाही ने पुछा।
“मेरा पूरा धन चोरी हो गया। मैंने अब तक जो भी कमाया था वह सब लुट गया। मैं पूरी तरह से बर्बाद हो चुका हूं।” मणिलाल ने रोते हुए सिपाही से कहा।
ऐसे में सिपाही ने मणिलाल से कहा, “आप चिंता ना करें मालिक। आप मदद के लिए बादशाह अकबर के पास जा सकते हैं और मुझे यकीन है कि वह इस समस्या का निवारण जरूर कर देंगे।”
“हां तुम बिल्कुल सही कह रहे हो। मैं तुरंत ही बादशाह अकबर के पास जाता हूं।”
इसके बाद मणिलाल तुरंत ही बादशाह अकबर के दरबार में पहुंचा और उसने बादशाह को अपनी सारी बात बताएं। ऐसे में बादशाह सोचने लगे कि आखिर चोरी किसने की होगी? फिर उन्होंने मणिलाल को आश्वासन दिया, “तुम चिंता मत करो मणिलाल। हम जैसे भी हो तुम्हारी समस्या का निवारण जरूर करेंगे।”
इसके बाद बादशाह ने बीरबल को आदेश दिया, “बीरबल मणिलाल की समस्या का हल तुम निकालोगे। पता लगाओ कि आखिरकार चोरी किसने की थी।”
“जी हां हुजूर, आपकी जैसी आज्ञा।”
इसके बाद बीरबल ने मणिलाल से कुछ सवाल पूछे, “अच्छा मुझे बताओ कि तुम्हारे घर कौन-कौन है जिस पर तुम्हें शक है?”
यह सवाल सुनकर मनीराम ने बीरबल को जवाब दिया, “हुजूर मेरे घर में मेरे नौकर और सिपाही रहते हैं। वह बहुत सालों से मेरी सेवा कर रही है और वह बहुत ही वफादार है। मुझे नहीं लगता कि उन्होंने किसी तरह की चोरी की होगी।”
बादशाह अकबर बैठकर यह सब बातें सुन रहे थे। तभी उन्होनें बीरबल से एक सवाल पूछा, “बीरबल यहां तो तुम्हें कोई भी सबूत नहीं मिल रहा और ना ही कोई गवाह है तो क्या तुम चोर का पता लगा सकते हो?”
“जी हजूर, लेकिन मुझे एक घंटे का समय चाहिए। मैं एक घंटे के बाद यहां इस सभा में वापस लौटूंगा।” बीरबल ने बादशाह से कहा।”
इसके बाद फिर बीरबल ने मणिलाल से कहा कि वह जाकर अपने सिपाही और नौकर को यहां पर लेकर आए। ठीक एक घंटे बाद बीरबल अपने साथ हाथ में कुछ लकड़ियों को लेकर दरबार में आ पहुंचे। उन्होंने बादशाह से कहा, “बादशाह मेरे हाथ में कुछ जादुई लकड़ियां है। यह लकड़ियां बहुत ही शक्तिशाली है। इसके सहारे मैने पहले भी बहुत से काम किए हैं और कई चोरों का पता भी लगाया है। इसीलिए मैं इसका इस्तेमाल आज फिर से करूंगा।” ऐसा कहने के बाद बीरबल ने एक-एक लकड़ी नौकर और सिपाही के हाथ में दे दी। बीरबल सबको बताया की इनमें से जो भी चोर होगा अगले दिन उसकी लकड़ी एक माप बडी हो जाएगी और फिर हम उस लकड़ी को देखकर पता लगा लेंगे कि चोर कौन है?
यह बात सुनकर बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा, “बीरबल क्या तुम सच में ऐसा करना चाहते हो?”
“जी जहाँपना मुझे भरोसा है कि कल तक हम चोर का पता लगा ही लेंगे।”
यह सब होने के बाद सब अपने घर वापस लौट आए। वह दिन बीत गया। अगले दिन सारे के सारे लोग वापस सभा में उपस्थित हुए। वहां बीरबल, मणिलाल, और मणिलाल के नौकर और सिपाही भी मौजूद थे। बीरबल ने नौकरों से और सिपाही से उस लकड़ी को लिया। फिर बीरबल ने कहा, “जहांपनाह वह चोर सिपाही है क्योंकि उसकी जो लकड़ी है वह एक माप छोटी है। वह चोर सिपाही है क्योंकि सिपाही ने सोचा की उसकी लकड़ी एक माप बड़ी हो जाएगी। इसलिए उसने अपनी लकड़ी एक माप छोटी करके काट दी।”
बीरबल की यह बात सुनकर वह सिपाही तुरंत अपने घुटनों पर गिर गया और बादशाह अकबर से रहम की भीख मांगने लगा, “बादशाह मुझे माफ कर दीजिए यह मेरी मजबूरी थी वरना मैं चोरी नहीं करता। अभी तक वह पैसे मैंने खर्च नहीं किए हैं। हर एक पैसा मैं अपने मालिक को लौटा दूंगा।
और इस तरह से बीरबल ने उस चोर का पता लगाया। बीरबल की यह समझदारी को देखकर बादशाह अकबर ने उसकी तारीफ की और उससे कहा, “मानना पड़ेगा बीरबल तुम बहुत ही समझदार हो। तुम्हारी इसी समझदारी की वजह से ही हमने बहुत सारी समस्याओं को दूर कर दिया है। तुम्हारे जैसा रत्न पाकर बहुत ही ज्यादा खुश है।