बीरबल की खिचड़ी की कहानी बीरबल की कहानियों में सबसे प्रचलित कहानी है। यह कहानी बड़ों को जितनी पसंद आती है उतनी ही ज्यादा बच्चों को भी पसंद आती है। कई बार तो लोग इस कहानी का शीर्षक एक मुहावरे के तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं। तो चलिए जानते हैं बीरबल की खिचड़ी की कहानी।
ठंड का समय था दिल्ली में बहुत ही ज्यादा ठंड पड़ी थी। उस समय बादशाह अकबर और बीरबल दोनों ही सुबह-सुबह बगीचे में घूम कर रहे थे। बादशाह अकबर ने बीरबल से कहा, “बीरबल देख रहे हो कितनी ज्यादा ठंड है। ऐसा लग रहा है कि अगर कोई बिना गर्म कपड़ों के बाहर आ जाए तो वह तुरंत ही बर्फ की तरह जम जाएगा।”
“जी हां जहांपना बिल्कुल सही कह रहे हैं आप।” बीरबल ने अकबर से कहा।
“अच्छा बीरबल यह बताओ इतनी ठंड में भी तुम यहां आ गए। लेकिन ऐसे बहुत से लोग होंगे जो इतनी सर्दी में घर से बाहर नहीं निकल रहे होंगे और अपने कामकाज को भी नहीं कर रहे होंगे।”
“जी हां, जहाँपनाह आपकी बात तो सही है। लेकिन ऐसे बहुत से लोग भी है जो मजबूरी के चलते इस सर्दी में भी निकला करते हैं। मजबूरी में ऐसे काम किया करते हैं जो इस सर्द में नहीं करनी चाहिए।” बीरबल ने कहा।
अकबर ने बीरबल से कहा, “अच्छा लेकिन मैं यह नहीं मानता। मैं नहीं मानता कि कोई इतनी सर्दी में अपने घर से निकलेगा और काम पर जाएगा। वह तो घर के अंदर रहकर गर्म बिस्तर पर लेटा रहेगा। लेकिन उठकर काम पर नहीं जाएगा।”
“नहीं नहीं जहाँपनाह बात ऐसी नहीं है। लोगों की मजबूरी है कि वह इस सर्द में भी निकल करकाम करें” बीरबल ने अकबर को बताया।
“अच्छा! ऐसी बात है तो मुझे साबित करके दिखाओ कि कोई इतनी सर्दी में भी चंद पैसों के लिए भी काम करने को कैसे निकल सकता है।” बादशाह अकबर ने बीरबल चुनौती देते हुए कहा। वही पास एक तालाब भी था जिसका पानी बहुत ही ज्यादा ठंडा था। बादशाह अकबर ने उस तालाब की ओर इशारा किया और बीरबल से कहा, “बीरबल उस तालाब को देखो उस तालाब को देखकर ही ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उसका पानी कितना ठंडा होगा। तुम एक ऐसे व्यक्ति को लेकर आओ जो रातभर इस तालाब में रहकर गुजार दें। मैं उसे ढेरों इनाम दूंगा।”
बीरबल ने कहा, “आपका हुकुम सर आंखों पर। आप जैसा कह रहे हैं मैं वैसा तुरंत करता हूं और आज ही एक ऐसे व्यक्ति का इंतजाम करता हूं जो यह कार्य कर देगा।”
बीरबल तुरंत ही दरबार से निकला और इस बात का ऐलान कर दिया कि राजा उस व्यक्ति को ढेरों इनाम देंगे जो रात भर बगीचे की तालाब में रहकर गुजार देगा। जनता में से एक आदमी गंगाराम बादशाह के दरबार में पहुंचा और उसने राजा से कहा, “बादशाह सलामत रहे। मेरे बादशाह आपने जो करने को कहा था वह करने के लिए मैं तैयार हूं।”
बीरबल ने कहा, “आपका हुकुम सर आंखों पर। आप जैसा कह रहे हैं मैं वैसा तुरंत करता हूं और आज ही एक ऐसे व्यक्ति का इंतजाम करता हूं जो यह कार्य कर देगा।”
बीरबल तुरंत ही दरबार से निकला और इस बात का ऐलान कर दिया कि राजा उस व्यक्ति को ढेरों इनाम देंगे जो रात भर बगीचे की तालाब में रहकर गुजार देगा। जनता में से एक आदमी गंगाराम बादशाह के दरबार में पहुंचा और उसने राजा से कहा, “बादशाह सलामत रहे। मेरे बादशाह आपने जो करने को कहा था वह करने के लिए मैं तैयार हूं।”
बादशाह अकबर ने कहा, “मैं तुम्हारे हिम्मत की दाद देता हूं। आज के लिए तुम हमारे मेहमान हो। जाओ और रात को हम तुम्हें उस तालाब में लेकर जाएंगे। उस तालाब पर तुम्हें पूरी रात गुजारनी है।”
रात का समय हुआ। गंगाराम को तालाब के पास ले जाया गया। गंगाराम ने तालाब का पानी छूकर देखा। तालाब का पानी बहुत ही ज्यादा ठंडा था फिर भी गंगाराम हिम्मत करके तालाब के अंदर चला गया। शुरुआत में गंगाराम बहुत ही कांप रहा था लेकिन कुछ देर बाद वह सीधा खड़ा होकर पूरा रात गुजार दिया।
दिन होते ही उसे बादशाह के दरबार पर बुलाया गया। बादशाह अकबर उसे देखकर दंग रह गए। उन्होंने तुरंत ही गंगाराम से पूछा, “आखिरकार तुम पूरी रात इतनी ठंडी में कैसे रह गए? अगर मैं होता तो मैं मर ही जाता।”
गंगाराम ने बादशाह अकबर के सवालों को जवाब दिया, “जहांपना, पास ही में एक जलता हुआ दीपक था जिसकी ओर ध्यान कर उसे देखकर मैं पूरी रात गुजार गया। मैंने अपना पूरा ध्यान उसपर रखा।”
“ओह! तो यह बात है। तुमने उस दीपक से गर्मी ली और उस गर्मी से पूरी रात भर तालाब में रह गए। तो तुमने तो हम सब के साथ धोखा किया है। वैसे मैं तुम्हें जाने देता हूं क्योंकि यह काम करना आसान नहीं था। लेकिन तुमने जिस तरीके का काम किया है उसके लिए मैं तुम्हें कोई भी इनाम नहीं दूंगा।” यह कहकर बादशाह ने गंगाराम को वापस भेज दिया।
वही पास में बीरबल खड़ा यह सब चीजें देख रहा था। तभी राजा ने बीरबल से कहा, “देखा बीरबल इस तरह का काम कोई भी नहीं कर सकता।”
बीरबल ने कहा, “जी हाँ जहांपनाह आप बिल्कुल सही कह रहे हैं।” यह कहकर बीरबल अपने घर लौट गया।
अगले दिन बीरबल ने बादशाह अकबर को खाने में आमंत्रित किया। बीरबल ने कहा, “बादशाह मैं बहुत ही अच्छी खिचड़ी बनाता हूं। मैं चाहता हूं कि कल आप मेरे घर आए और मेरी हाथ की बनी हुई खिचड़ी खाए।”
राजा ने बीरबल का निमंत्रण स्वीकार किया और अगले दिन बीरबल के घर जा पहुंचे। बीरबल के घर पहुंचते ही बादशाह ने बीरबल से कहा, “बीरबल, लेकर आओ तुम्हारी खिचड़ी जरा हम भी तो उसका स्वाद ले कर देखें कि आखिर तुम कैसी खिचड़ी बनाते हो?”
“जी हां जहांपना बस खिचड़ी तैयार होने वाली है।” बीरबल ने कहा।
“ठीक है।”राजा ने कहा।
समय बीतता जा रहा था ओर राजा का भूख बढ़ता ही जा रहा था। ऐसे में बादशाह ने बीरबल से फिर पूछा, “बीरबल तुम्हारी खिचड़ी बनने में और कितना समय लगेगा। मेरी भूख बढ़ती ही जा रही है।”
बीरबल ने जवाब दिया, “बस जहांपना कुछ देर और आप की खिचड़ी तुरंत तैयार हो जाएगी।”
“अच्छा ठीक है। जल्दी लेकर आओ।”
ऐसे करते करते और समय बीत गया और राजा का भूख बढ़ने लगा था उन्होंने गुस्से में आकर बीरबल से पूछा, “तुम क्या कर रहे हो? अभी तक तुम्हारा खिचड़ी तैयार नहीं हुआ। जल्दी लेकर आओ मुझे बहुत भूख लगी है”
“जी हां जहाँपनाह मैं अभी लेकर आता हूं बस यह तैयार होने वाला है।” यह कहकर बिरबल फिर अपनी रसोई की ओर चला गया। कुछ समय और बीतने के बाद राजा उठकर बीरबल की रसोई की ओर जा पहुंचे। बादशाह अकबर ने देखा कि बीरबल हांड़ी(पकाने का बरतन) को आग से बहुत ही ऊपर लगाकर रखा था। जिससे कि आग की ताप उस हांड़ी तक नहीं पहुंच सकती थी। ऐसे में राजा ने बीरबल ने कहा, “अरे बेवकूफ! तुम आखिर कर क्या रहे हो? ऐसे में तो तुम्हारी खिचड़ी कभी भी नहीं पकेगी।”
“पकेगी जहाँपनाह यह जरूर पकेगी।” बीरबल ने कहा।
“अरे आग का ताप तो हांड़ी में पहुंच ही नहीं रहा है तो फिर तुम्हारी खिचड़ी कैसे पक सकती है। इसके लिए आग का ताप खिचड़ी की हांड़ी तक पहुचाना चाहिए।” राजा ने समझाते हुए कहा।
बीरबल ने कहा, “जिस तरह से एक छोटा सा दीपक गंगाराम को ताप दे सकता है। तो इस तरह से हांड़ी को आग से ताप अवश्य ही मिल जाएगा।”
यह बात सुनकर बादशाह समझ चुके थे कि उन्होंने क्या गलती की थी। तुरंत ही राजा ने बीरबल को कहा, “बीरबल मैं समझ चुका हूं कि तुम आखिर कहना क्या चाहते हो। मैं तुरंत ही गंगाराम को बुलाकर उसका इनाम उसे दूंगा और मैं तुम्हारा शुक्रिया करता हूं कि तुमने मेरी गलती को मुझे बताया।”